وَالَّذِيْنَ اسْتَجَابُوْا لِرَبِّهِمْ وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَۖ وَاَمْرُهُمْ شُوْرٰى بَيْنَهُمْۖ وَمِمَّا رَزَقْنٰهُمْ يُنْفِقُوْنَ ۚ ( الشورى: ٣٨ )
And those who
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
respond
ٱسْتَجَابُوا۟
लब्बैक कही (अपने रब की बात को)
to their Lord
لِرَبِّهِمْ
अपने रब के लिए
and establish
وَأَقَامُوا۟
और उन्होंने क़ायम की
prayer
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
and their affairs
وَأَمْرُهُمْ
और काम उनका
(are conducted by) consultation
شُورَىٰ
मश्वरा करना है
among them
بَيْنَهُمْ
आपस में
and from what
وَمِمَّا
और उसमें से जो
We have provided them
رَزَقْنَٰهُمْ
रिज़्क़ दिया हमने उन्हें
they spend
يُنفِقُونَ
वो ख़र्च करते हैं
Waallatheena istajaboo lirabbihim waaqamoo alssalata waamruhum shoora baynahum wamimma razaqnahum yunfiqoona (aš-Šūrā 42:38)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जिन्होंने अपने रब का हुक्म माना और नमाज़ क़ायम की, और उनका मामला उनके पारस्परिक परामर्श से चलता है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते है;
English Sahih:
And those who have responded to their Lord and established prayer and whose affair is [determined by] consultation among themselves, and from what We have provided them, they spend, ([42] Ash-Shuraa : 38)