وَلَوْ اَنَّ قُرْاٰنًا سُيِّرَتْ بِهِ الْجِبَالُ اَوْ قُطِّعَتْ بِهِ الْاَرْضُ اَوْ كُلِّمَ بِهِ الْمَوْتٰىۗ بَلْ لِّلّٰهِ الْاَمْرُ جَمِيْعًاۗ اَفَلَمْ يَا۟يْـَٔسِ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنْ لَّوْ يَشَاۤءُ اللّٰهُ لَهَدَى النَّاسَ جَمِيْعًاۗ وَلَا يَزَالُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا تُصِيْبُهُمْ بِمَا صَنَعُوْا قَارِعَةٌ اَوْ تَحُلُّ قَرِيْبًا مِّنْ دَارِهِمْ حَتّٰى يَأْتِيَ وَعْدُ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يُخْلِفُ الْمِيْعَادَ ࣖ ( الرعد: ٣١ )
Walaw anna quranan suyyirat bihi aljibalu aw qutti'at bihi alardu aw kullima bihi almawta bal lillahi alamru jamee'an afalam yayasi allatheena amanoo an law yashao Allahu lahada alnnasa jamee'an wala yazalu allatheena kafaroo tuseebuhum bima sana'oo qari'atun aw tahullu qareeban min darihim hatta yatiya wa'du Allahi inna Allaha la yukhlifu almee'ada (ar-Raʿd 13:31)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और यदि कोई ऐसा क़ुरआन होता जिसके द्वारा पहाड़ चलने लगते या उससे धरती खंड-खंड हो जाती या उसके द्वारा मुर्दे बोलने लगते (तब भी वे लोग ईमान न लाते) । नहीं, बल्कि बात यह है कि सारे काम अल्लाह ही के अधिकार में है। फिर क्या जो लोग ईमान लाए है वे यह जानकर निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग पर लगा देता? और इनकार करनेवालों पर तो उनकी करतूतों के बदले में कोई न कोई आपदा निरंतर आती ही रहेगी, या उनके घर के निकट ही कहीं उतरती रहेगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वादा आ पूरा होगा। निस्संदेह अल्लाह अपने वादे के विरुद्ध नहीं जाता।'
English Sahih:
And if there was any Quran [i.e., recitation] by which the mountains would be removed or the earth would be broken apart or the dead would be made to speak, [it would be this Quran], but to Allah belongs the affair entirely. Then have those who believed not accepted that had Allah willed, He would have guided the people, all of them? And those who disbelieve do not cease to be struck, for what they have done, by calamity – or it will descend near their home – until there comes the promise of Allah. Indeed, Allah does not fail in [His] promise. ([13] Ar-Ra'd : 31)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाज़िल होता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख्तेयार ख़ुदा ही को है तो क्या अभी तक ईमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर ख़ुदा चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाज़िल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि ख़ुदा का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा हरगिज़ ख़िलाफ़े वायदा नहीं करता