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قُلْ لَّىِٕنِ اجْتَمَعَتِ الْاِنْسُ وَالْجِنُّ عَلٰٓى اَنْ يَّأْتُوْا بِمِثْلِ هٰذَا الْقُرْاٰنِ لَا يَأْتُوْنَ بِمِثْلِهٖ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِيْرًا  ( الإسراء: ٨٨ )

Say
قُل
कह दीजिए
"If
لَّئِنِ
अलबत्ता अगर
gathered
ٱجْتَمَعَتِ
जमा हो जाऐं
the mankind
ٱلْإِنسُ
इन्सान
and the jinn
وَٱلْجِنُّ
और जिन्न
to
عَلَىٰٓ
इस (बात) पर
[that]
أَن
कि
bring
يَأْتُوا۟
वो ले आऐं
the like
بِمِثْلِ
मानिन्द
(of) this
هَٰذَا
इस
Quran
ٱلْقُرْءَانِ
क़ुरआन के
not
لَا
ना वो ला सकेंगे
they (could) bring
يَأْتُونَ
ना वो ला सकेंगे
the like of it
بِمِثْلِهِۦ
इसकी तरह का
even if
وَلَوْ
और अगरचे
were
كَانَ
हों
some of them
بَعْضُهُمْ
बाज़ उनके
to some others
لِبَعْضٍ
बाज़ के लिए
assistants"
ظَهِيرًا
मददगार

Qul laini ijtama'ati alinsu waaljinnu 'ala an yatoo bimithli hatha alqurani la yatoona bimithlihi walaw kana ba'duhum liba'din thaheeran (al-ʾIsrāʾ 17:88)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

कह दो, 'यदि मनुष्य और जिन्न इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ, तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।'

English Sahih:

Say, "If mankind and the jinn gathered in order to produce the like of this Quran, they could not produce the like of it, even if they were to each other assistants." ([17] Al-Isra : 88)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अगर सारे दुनिया जहाँन के) आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि उस क़ुरान का मिसल ले आएँ तो (ना मुमकिन) उसके बराबर नहीं ला सकते अगरचे (उसको कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने