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نَحْنُ اَوْلِيَاۤؤُكُمْ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَفِى الْاٰخِرَةِ ۚوَلَكُمْ فِيْهَا مَا تَشْتَهِيْٓ اَنْفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِيْهَا مَا تَدَّعُوْنَ ۗ   ( فصلت: ٣١ )

We
نَحْنُ
हम
(are) your protectors
أَوْلِيَآؤُكُمْ
दोस्त हैं तुम्हारे
in
فِى
ज़िन्दगी में
the life
ٱلْحَيَوٰةِ
ज़िन्दगी में
(of) the world
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की
and in
وَفِى
और आख़िरत में
the Hereafter
ٱلْءَاخِرَةِۖ
और आख़िरत में
And for you
وَلَكُمْ
और तुम्हारे लिए
therein
فِيهَا
उसमें
whatever
مَا
वो है जो
desire
تَشْتَهِىٓ
चाहेंगे
your souls
أَنفُسُكُمْ
नफ़्स तुम्हारे
and for you
وَلَكُمْ
और तुम्हारे लिए
therein
فِيهَا
उसमें
what
مَا
वो है जो
you ask
تَدَّعُونَ
तुम तलब करोगे

Nahnu awliyaokum fee alhayati alddunya wafee alakhirati walakum feeha ma tashtahee anfusukum walakum feeha ma tadda'oona (Fuṣṣilat 41:31)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहचर मित्र है और आख़िरत में भी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ है, जिसकी इच्छा तुम्हारे जी को होगी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ होगा, जिसका तुम माँग करोगे

English Sahih:

We [angels] were your allies in worldly life and [are so] in the Hereafter. And you will have therein whatever your souls desire, and you will have therein whatever you request [or wish] ([41] Fussilat : 31)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

हम दुनिया की ज़िन्दगी में तुम्हारे दोस्त थे और आखेरत में भी तुम्हारे (रफ़ीक़) हैं और जिस चीज़ का भी तुम्हार जी चाहे बेहिश्त में तुम्हारे वास्ते मौजूद है और जो चीज़ तलब करोगे वहाँ तुम्हारे लिए (हाज़िर) होगी