وَكَذٰلِكَ اَوْحَيْنَآ اِلَيْكَ رُوْحًا مِّنْ اَمْرِنَا ۗمَا كُنْتَ تَدْرِيْ مَا الْكِتٰبُ وَلَا الْاِيْمَانُ وَلٰكِنْ جَعَلْنٰهُ نُوْرًا نَّهْدِيْ بِهٖ مَنْ نَّشَاۤءُ مِنْ عِبَادِنَا ۗوَاِنَّكَ لَتَهْدِيْٓ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍۙ ( الشورى: ٥٢ )
Wakathalika awhayna ilayka roohan min amrina ma kunta tadree ma alkitabu wala aleemanu walakin ja'alnahu nooran nahdee bihi man nashao min 'ibadina wainnaka latahdee ila siratin mustaqeemin (aš-Šūrā 42:52)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और इसी प्रकार हमने अपने आदेश से एक रूह (क़ुरआन) की प्रकाशना तुम्हारी ओर की है। तुम नहीं जानते थे कि किताब क्या होती है और न ईमान को (जानते थे), किन्तु हमने इस (प्रकाशना) को एक प्रकाश बनाया, जिसके द्वारा हम अपने बन्दों में से जिसे चाहते है मार्ग दिखाते है। निश्चय ही तुम एक सीधे मार्ग की ओर पथप्रदर्शन कर रहे हो-
English Sahih:
And thus We have revealed to you an inspiration of Our command [i.e., the Quran]. You did not know what is the Book or [what is] faith, but We have made it a light by which We guide whom We will of Our servants. And indeed, [O Muhammad], you guide to a straight path – ([42] Ash-Shuraa : 52)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और इसी तरह हमने अपने हुक्म को रूह (क़ुरान) तुम्हारी तरफ 'वही' के ज़रिए से भेजे तो तुम न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को मगर इस (क़ुरान) को एक नूर बनाया है कि इससे हम अपने बन्दों में से जिसकी चाहते हैं हिदायत करते हैं और इसमें शक़ नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो