وَاِذَا جَاۤءَتْهُمْ اٰيَةٌ قَالُوْا لَنْ نُّؤْمِنَ حَتّٰى نُؤْتٰى مِثْلَ مَآ اُوْتِيَ رُسُلُ اللّٰهِ ۘ اَللّٰهُ اَعْلَمُ حَيْثُ يَجْعَلُ رِسٰلَتَهٗۗ سَيُصِيْبُ الَّذِيْنَ اَجْرَمُوْا صَغَارٌ عِنْدَ اللّٰهِ وَعَذَابٌ شَدِيْدٌۢ بِمَا كَانُوْا يَمْكُرُوْنَ ( الأنعام: ١٢٤ )
Waitha jaathum ayatun qaloo lan numina hatta nuta mithla ma ootiya rusulu Allahi Allahu a'lamu haythu yaj'alu risalatahu sayuseebu allatheena ajramoo sagharun 'inda Allahi wa'athabun shadeedun bima kanoo yamkuroona (al-ʾAnʿām 6:124)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जब उनके पास कोई आयत (निशानी) आता है, तो वे कहते है, 'हम कदापि नहीं मानेंगे, जब तक कि वैसी ही चीज़ हमें न दी जाए जो अल्लाह के रसूलों को दी गई हैं।' अल्लाह भली-भाँति उस (के औचित्य) को जानता है, जिसमें वह अपनी पैग़म्बरी रखता है। अपराधियों को शीघ्र ही अल्लाह के यहाँ बड़े अपमान और कठोर यातना का सामना करना पड़ेगा, उस चाल के कारण जो वे चलते रहे है
English Sahih:
And when a sign comes to them, they say, "Never will we believe until we are given like that which was given to the messengers of Allah." Allah is most knowing of where [i.e., with whom] He places His message. There will afflict those who committed crimes debasement before Allah and severe punishment for what they used to conspire. ([6] Al-An'am : 124)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जब उनके पास कोई निशानी (नबी की तसदीक़ के लिए) आई है तो कहते हैं जब तक हमको ख़ुद वैसी चीज़ (वही वग़ैरह) न दी जाएगी जो पैग़म्बराने ख़ुदा को दी गई है उस वक्त तक तो हम ईमान न लाएँगे और ख़ुदा जहाँ (जिस दिल में) अपनी पैग़म्बरी क़रार देता है उसकी (काबलियत व सलाहियत) को ख़ूब जानता है जो लोग (उस जुर्म के) मुजरिम हैं उनको अनक़रीब उनकी मक्कारी की सज़ा में ख़ुदा के यहाँ बड़ी ज़िल्लत और सख्त अज़ाब होगा