وَجَعَلُوْا لِلّٰهِ مِمَّا ذَرَاَ مِنَ الْحَرْثِ وَالْاَنْعَامِ نَصِيْبًا فَقَالُوْا هٰذَا لِلّٰهِ بِزَعْمِهِمْ وَهٰذَا لِشُرَكَاۤىِٕنَاۚ فَمَا كَانَ لِشُرَكَاۤىِٕهِمْ فَلَا يَصِلُ اِلَى اللّٰهِ ۚوَمَا كَانَ لِلّٰهِ فَهُوَ يَصِلُ اِلٰى شُرَكَاۤىِٕهِمْۗ سَاۤءَ مَا يَحْكُمُوْنَ ( الأنعام: ١٣٦ )
Waja'aloo lillahi mimma tharaa mina alharthi waalan'ami naseeban faqaloo hatha lillahi biza'mihim wahatha lishurakaina fama kana lishurakaihim fala yasilu ila Allahi wama kana lillahi fahuwa yasilu ila shurakaihim saa ma yahkumoona (al-ʾAnʿām 6:136)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उन्होंने अल्लाह के लिए स्वयं उसी की पैदा की हुई खेती और चौपायों में से एक भाग निश्चित किया है और अपने ख़याल से कहते है, 'यह किस्सा अल्लाह का है और यह हमारे ठहराए हुए साझीदारों का है।' फिर जो उनके साझीदारों का (हिस्सा) है, वह अल्लाह को नहीं पहुँचता, परन्तु जो अल्लाह का है, वह उनके साझीदारों को पहुँच जाता है। कितना बुरा है, जो फ़ैसला वे करते है!
English Sahih:
And they [i.e., the polytheists] assign to Allah from that which He created of crops and livestock a share and say, "This is for Allah," by their claim, "and this is for our 'partners' [associated with Him]." But what is for their "partners" does not reach Allah, while what is for Allah – this reaches their "partners." Evil is that which they rule. ([6] Al-An'am : 136)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और ये लोग ख़ुदा की पैदा की हुई खेती और चौपायों में से हिस्सा क़रार देते हैं और अपने ख्याल के मुवाफिक कहते हैं कि ये तो ख़ुदा का (हिस्सा) है और ये हमारे शरीकों का (यानि जिनको हमने ख़ुदा का शरीक बनाया) फिर जो ख़ास उनके शरीकों का है वह तो ख़ुदा तक नहीं पहुँचने का और जो हिस्सा ख़ुदा का है वो उसके शरीकों तक पहुँच जाएगा ये क्या ही बुरा हुक्म लगाते हैं और उसी तरह बहुतेरे मुशरकीन को उनके शरीकों ने अपने बच्चों को मार डालने को अच्छा कर दिखाया है