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فَاِذَا انْسَلَخَ الْاَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُوا الْمُشْرِكِيْنَ حَيْثُ وَجَدْتُّمُوْهُمْ وَخُذُوْهُمْ وَاحْصُرُوْهُمْ وَاقْعُدُوْا لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍۚ فَاِنْ تَابُوْا وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتَوُا الزَّكٰوةَ فَخَلُّوْا سَبِيْلَهُمْۗ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ  ( التوبة: ٥ )

Then when
فَإِذَا
फिर जब
have passed
ٱنسَلَخَ
गुज़र जाऐं
the sacred months
ٱلْأَشْهُرُ
महीने
the sacred months
ٱلْحُرُمُ
हुरमत वाले
then kill
فَٱقْتُلُوا۟
तो क़त्ल करो
the polytheists
ٱلْمُشْرِكِينَ
मुशरिकों को
wherever
حَيْثُ
जहाँ कहीं
you find them
وَجَدتُّمُوهُمْ
पाओ तुम उन्हें
and seize them
وَخُذُوهُمْ
और पकड़ो उन्हें
and besiege them
وَٱحْصُرُوهُمْ
और घेरो उन्हें
and sit (in wait)
وَٱقْعُدُوا۟
और बैठ जाओ
for them
لَهُمْ
उनके लिए
(at) every
كُلَّ
हर
place of ambush
مَرْصَدٍۚ
घात पर
But if
فَإِن
फिर अगर
they repent
تَابُوا۟
और वो तौबा कर लें
and establish
وَأَقَامُوا۟
और वो क़ायम करें
the prayer
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
and give
وَءَاتَوُا۟
और वो अदा करें
the zakah
ٱلزَّكَوٰةَ
ज़कात
then leave
فَخَلُّوا۟
तो छोड़ दो
their way
سَبِيلَهُمْۚ
रास्ता उनका
Indeed
إِنَّ
बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
(is) Oft-Forgiving
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
Most Merciful
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है

Faitha insalakha alashhuru alhurumu faoqtuloo almushrikeena haythu wajadtumoohum wakhuthoohum waohsuroohum waoq'udoo lahum kulla marsadin fain taboo waaqamoo alssalata waatawoo alzzakata fakhalloo sabeelahum inna Allaha ghafoorun raheemun (at-Tawbah 9:5)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

English Sahih:

And when the inviolable months have passed, then kill the polytheists wherever you find them and capture them and besiege them and sit in wait for them at every place of ambush. But if they should repent, establish prayer, and give Zakah, let them [go] on their way. Indeed, Allah is Forgiving and Merciful. ([9] At-Tawbah : 5)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आऎं और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है