اِسْتَغْفِرْ لَهُمْ اَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْۗ اِنْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِيْنَ مَرَّةً فَلَنْ يَّغْفِرَ اللّٰهُ لَهُمْ ۗذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖۗ وَاللّٰهُ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْفٰسِقِيْنَ ࣖ ( التوبة: ٨٠ )
Istaghfir lahum aw la tastaghfir lahum in tastaghfir lahum sab'eena marratan falan yaghfira Allahu lahum thalika biannahum kafaroo biAllahi warasoolihi waAllahu la yahdee alqawma alfasiqeena (at-Tawbah 9:80)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो या उनके लिए क्षमा की प्रार्थना न करो। यदि तुम उनके लिए सत्तर बार भी क्षमा की प्रार्थना करोगे, तो भी अल्लाह उन्हें क्षमा नहीं करेगा, यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह अवज्ञाकारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता
English Sahih:
Ask forgiveness for them, [O Muhammad], or do not ask forgiveness for them. If you should ask forgiveness for them seventy times – never will Allah forgive them. That is because they disbelieved in Allah and His Messenger, and Allah does not guide the defiantly disobedient people. ([9] At-Tawbah : 80)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) ख्वाह तुम उन (मुनाफिक़ों) के लिए मग़फिरत की दुआ मॉगों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ न मॉगों (उनके लिए बराबर है) तुम उनके लिए सत्तर बार भी बख्शिस की दुआ मांगोगे तो भी ख़ुदा उनको हरगिज़ न बख्शेगा ये (सज़ा) इस सबब से है कि उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और ख़ुदा बदकार लोगों को मंज़िलें मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता