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رَبَّنَآ اِنِّيْٓ اَسْكَنْتُ مِنْ ذُرِّيَّتِيْ بِوَادٍ غَيْرِ ذِيْ زَرْعٍ عِنْدَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِۙ رَبَّنَا لِيُقِيْمُوا الصَّلٰوةَ فَاجْعَلْ اَفْـِٕدَةً مِّنَ النَّاسِ تَهْوِيْٓ اِلَيْهِمْ وَارْزُقْهُمْ مِّنَ الثَّمَرٰتِ لَعَلَّهُمْ يَشْكُرُوْنَ  ( ابراهيم: ٣٧ )

Our Lord!
رَّبَّنَآ
ऐ हमारे रब
Indeed, I
إِنِّىٓ
बेशक मैं
[I] have settled
أَسْكَنتُ
बसाया मैंने
(some) of
مِن
अपनी कुछ औलाद को
my offsprings
ذُرِّيَّتِى
अपनी कुछ औलाद को
in a valley
بِوَادٍ
वादी में
not
غَيْرِ
बग़ैर
with
ذِى
खेती वाली
cultivation
زَرْعٍ
खेती वाली
near
عِندَ
पास
Your Sacred House
بَيْتِكَ
तेरे घर के
Your Sacred House
ٱلْمُحَرَّمِ
हुरमत वाले
our Lord!
رَبَّنَا
ऐ हमारे रब
That they may establish
لِيُقِيمُوا۟
ताकि वो क़ायम करें
the prayers
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
So make
فَٱجْعَلْ
पस कर दे
hearts
أَفْـِٔدَةً
दिलों को
of
مِّنَ
लोगों के
the men
ٱلنَّاسِ
लोगों के
incline
تَهْوِىٓ
वो माइल हों
towards them
إِلَيْهِمْ
तरफ़ उनके
and provide them
وَٱرْزُقْهُم
और रिज़्क़ दे उन्हें
with
مِّنَ
फलों में से
the fruits
ٱلثَّمَرَٰتِ
फलों में से
so that they may
لَعَلَّهُمْ
ताकि वो
be grateful
يَشْكُرُونَ
वो शुक्र अदा करें

Rabbana innee askantu min thurriyyatee biwadin ghayri thee zar'in 'inda baytika almuharrami rabbana liyuqeemoo alssalata faij'al afidatan mina alnnasi tahwee ilayhim waorzuqhum mina alththamarati la'allahum yashkuroona (ʾIbrāhīm 14:37)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

मेरे रब! मैंने एक ऐसी घाटी में जहाँ कृषि-योग्य भूमि नहीं अपनी सन्तान के एक हिस्से को तेरे प्रतिष्ठित घर (काबा) के निकट बसा दिया है। हमारे रब! ताकि वे नमाज़ क़ायम करें। अतः तू लोगों के दिलों को उनकी ओर झुका दे और उन्हें फलों और पैदावार की आजीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ बने

English Sahih:

Our Lord, I have settled some of my descendants in an uncultivated valley near Your sacred House, our Lord, that they may establish prayer. So make hearts among the people incline toward them and provide for them from the fruits that they might be grateful. ([14] Ibrahim : 37)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

ऐ हमारे पालने वाले मैने तेरे मुअज़िज़ (इज्ज़त वाले) घर (काबे) के पास एक बेखेती के (वीरान) बियाबान (मक्का) में अपनी कुछ औलाद को (लाकर) बसाया है ताकि ऐ हमारे पालने वाले ये लोग बराबर यहाँ नमाज़ पढ़ा करें तो तू कुछ लोगों के दिलों को उनकी तरफ माएल कर (ताकि वह यहाँ आकर आबाद हों) और उन्हें तरह तरह के फलों से रोज़ी अता कर ताकि ये लोग (तेरा) शुक्र करें