اَلَمْ يَأْتِكُمْ نَبَؤُا الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ قَوْمِ نُوْحٍ وَّعَادٍ وَّثَمُوْدَ ەۗ وَالَّذِيْنَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ ۗ لَا يَعْلَمُهُمْ اِلَّا اللّٰهُ ۗجَاۤءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنٰتِ فَرَدُّوْٓا اَيْدِيَهُمْ فِيْٓ اَفْوَاهِهِمْ وَقَالُوْٓا اِنَّا كَفَرْنَا بِمَآ اُرْسِلْتُمْ بِهٖ وَاِنَّا لَفِيْ شَكٍّ مِّمَّا تَدْعُوْنَنَآ اِلَيْهِ مُرِيْبٍ ( ابراهيم: ٩ )
Alam yatikum nabao allatheena min qablikum qawmi noohin wa'adin wathamooda waallatheena min ba'dihim la ya'lamuhum illa Allahu jaathum rusuluhum bialbayyinati faraddoo aydiyahum fee afwahihim waqaloo inna kafarna bima orsiltum bihi wainna lafee shakkin mimma tad'oonana ilayhi mureebun (ʾIbrāhīm 14:9)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
क्या तुम्हें उन लोगों की खबर नहीं पहुँची जो तुमसे पहले गुज़रे हैं, नूह की क़ौम और आद और समूद और वे लोग जो उनके पश्चात हुए जिनको अल्लाह के अतिरिक्त कोई नहीं जानता? उनके पास उनके रसूल स्पष्टि प्रमाण लेकर आए थे, किन्तु उन्होंने उनके मुँह पर अपने हाथ रख दिए और कहने लगे, 'जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम उसका इनकार करते है और जिसकी ओर तुम हमें बुला रहे हो, उसके विषय में तो हम अत्यन्त दुविधाजनक संदेह में ग्रस्त है।'
English Sahih:
Has there not reached you the news of those before you – the people of Noah and Aad and Thamud and those after them? No one knows them [i.e., their number] but Allah. Their messengers brought them clear proofs, but they returned their hands to their mouths and said, "Indeed, we disbelieve in that with which you have been sent, and indeed we are, about that to which you invite us, in disquieting doubt." ([14] Ibrahim : 9)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और हम्द है क्या तुम्हारे पास उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची जो तुमसे पहले थे (जैसे) नूह की क़ौम और आद व समूद और (दूसरे लोग) जो उनके बाद हुए (क्योकर ख़बर होती) उनको ख़ुदा के सिवा कोई जानता ही नहीं उनके पास उनके (वक्त क़े) पैग़म्बर मौजिज़े लेकर आए (और समझाने लगे) तो उन लोगों ने उन पैग़म्बरों के हाथों को उनके मुँह पर उलटा मार दिया और कहने लगे कि जो (हुक्म लेकर) तुम ख़ुदा की तरफ से भेजे गए हो हम तो उसको नहीं मानते और जिस (दीन) की तरफ तुम हमको बुलाते हो बड़े गहरे शक़ में पड़े है