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وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْاٰنِ مَا هُوَ شِفَاۤءٌ وَّرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِيْنَۙ وَلَا يَزِيْدُ الظّٰلِمِيْنَ اِلَّا خَسَارًا  ( الإسراء: ٨٢ )

And We reveal
وَنُنَزِّلُ
और हम नाज़िल करते हैं
from
مِنَ
क़ुरआन से
the Quran
ٱلْقُرْءَانِ
क़ुरआन से
that
مَا
जो
it
هُوَ
वो
(is) a healing
شِفَآءٌ
शिफ़ा
and a mercy
وَرَحْمَةٌ
और रहमत है
for the believers
لِّلْمُؤْمِنِينَۙ
ईमान लाने वालों के लिए
but not
وَلَا
और नहीं
it increases
يَزِيدُ
वो ज़्यादा करता
the wrongdoers
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों को
except
إِلَّا
मगर
(in) loss
خَسَارًا
ख़सारे में

Wanunazzilu mina alqurani ma huwa shifaon warahmatun lilmumineena wala yazeedu alththalimeena illa khasaran (al-ʾIsrāʾ 17:82)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

हम क़ुरआन में से जो उतारते है वह मोमिनों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) और दयालुता है, किन्तु ज़ालिमों के लिए तो वह बस घाटे ही में अभिवृद्धि करता है

English Sahih:

And We send down of the Quran that which is healing and mercy for the believers, but it does not increase the wrongdoers except in loss. ([17] Al-Isra : 82)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और हम तो क़ुरान में वही चीज़ नाज़िल करते हैं जो मोमिनों के लिए (सरासर) शिफा और रहमत है (मगर) नाफरमानों को तो घाटे के सिवा कुछ बढ़ाता ही नहीं