وَاصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ الَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَدٰوةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيْدُوْنَ وَجْهَهٗ وَلَا تَعْدُ عَيْنٰكَ عَنْهُمْۚ تُرِيْدُ زِيْنَةَ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَاۚ وَلَا تُطِعْ مَنْ اَغْفَلْنَا قَلْبَهٗ عَنْ ذِكْرِنَا وَاتَّبَعَ هَوٰىهُ وَكَانَ اَمْرُهٗ فُرُطًا ( الكهف: ٢٨ )
Waisbir nafsaka ma'a allatheena yad'oona rabbahum bialghadati waal'ashiyyi yureedoona wajhahu wala ta'du 'aynaka 'anhum tureedu zeenata alhayati alddunya wala tuti' man aghfalna qalbahu 'an thikrina waittaba'a hawahu wakana amruhu furutan (al-Kahf 18:28)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अपने आपको उन लोगों के साथ थाम रखो, जो प्रातःकाल और सायंकाल अपने रब को उसकी प्रसन्नता चाहते हुए पुकारते है और सांसारिक जीवन की शोभा की चाह में तुम्हारी आँखें उनसे न फिरें। और ऐसे व्यक्ति की बात न मानना जिसके दिल को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल पाया है और वह अपनी इच्छा और वासना के पीछे लगा हुआ है और उसका मामला हद से आगे बढ़ गया है
English Sahih:
And keep yourself patient [by being] with those who call upon their Lord in the morning and the evening, seeking His face [i.e., acceptance]. And let not your eyes pass beyond them, desiring adornments of the worldly life, and do not obey one whose heart We have made heedless of Our remembrance and who follows his desire and whose affair is ever [in] neglect. ([18] Al-Kahf : 28)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने ज़िक्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना