۞ يَسـَٔلُوْنَكَ عَنِ الْاَهِلَّةِ ۗ قُلْ هِيَ مَوَاقِيْتُ لِلنَّاسِ وَالْحَجِّ ۗ وَلَيْسَ الْبِرُّ بِاَنْ تَأْتُوا الْبُيُوْتَ مِنْ ظُهُوْرِهَا وَلٰكِنَّ الْبِرَّ مَنِ اتَّقٰىۚ وَأْتُوا الْبُيُوْتَ مِنْ اَبْوَابِهَا ۖ وَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ( البقرة: ١٨٩ )
Yasaloonaka 'ani alahillati qul hiya mawaqeetu lilnnasi waalhajji walaysa albirru bian tatoo albuyoota min thuhooriha walakinna albirra mani ittaqa watoo albuyoota min abwabiha waittaqoo Allaha la'allakum tuflihoona (al-Baq̈arah 2:189)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे तुमसे (प्रतिष्ठित) महीनों के विषय में पूछते है। कहो, 'वे तो लोगों के लिए और हज के लिए नियत है। और यह कोई ख़ूबी और नेकी नहीं हैं कि तुम घरों में उनके पीछे से आओ, बल्कि नेकी तो उसकी है जो (अल्लाह का) डर रखे। तुम घरों में उनके दरवाड़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो
English Sahih:
They ask you, [O Muhammad], about the crescent moons. Say, "They are measurements of time for the people and for Hajj [pilgrimage]." And it is not righteousness to enter houses from the back, but righteousness is [in] one who fears Allah. And enter houses from their doors. And fear Allah that you may succeed. ([2] Al-Baqarah : 189)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं (कि क्यो घटता बढ़ता है) तुम कह दो कि उससे लोगों के (दुनयावी) अम्र और हज के अवक़ात मालूम होते है और ये कोई भली बात नही है कि घरो में पिछवाड़े से फाँद के) आओ बल्कि नेकी उसकी है जो परहेज़गारी करे और घरों में आना हो तो) उनके दरवाजों क़ी तरफ से आओ और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम मुराद को पहुँचो