اٰمَنَ الرَّسُوْلُ بِمَآ اُنْزِلَ اِلَيْهِ مِنْ رَّبِّهٖ وَالْمُؤْمِنُوْنَۗ كُلٌّ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَمَلٰۤىِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖۗ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ اَحَدٍ مِّنْ رُّسُلِهٖ ۗ وَقَالُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَا غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَاِلَيْكَ الْمَصِيْرُ ( البقرة: ٢٨٥ )
Amana alrrasoolu bima onzila ilayhi min rabbihi waalmuminoona kullun amana biAllahi wamalaikatihi wakutubihi warusulihi la nufarriqu bayna ahadin min rusulihi waqaloo sami'na waata'na ghufranaka rabbana wailayka almaseeru (al-Baq̈arah 2:285)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) 'हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।' और उनका कहना है, 'हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।'
English Sahih:
The Messenger has believed in what was revealed to him from his Lord, and [so have] the believers. All of them have believed in Allah and His angels and His books and His messengers, [saying], "We make no distinction between any of His messengers." And they say, "We hear and we obey. [We seek] Your forgiveness, our Lord, and to You is the [final] destination." ([2] Al-Baqarah : 285)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
हमारे पैग़म्बर (मोहम्मद) जो कुछ उनपर उनके परवरदिगार की तरफ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और उनके (साथ) मोमिनीन भी (सबके) सब ख़ुदा और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए (और कहते हैं कि) हम ख़ुदा के पैग़म्बरों में से किसी में तफ़रक़ा नहीं करते और कहने लगे ऐ हमारे परवरदिगार हमने (तेरा इरशाद) सुना