لَوْ يَعْلَمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا حِيْنَ لَا يَكُفُّوْنَ عَنْ وُّجُوْهِهِمُ النَّارَ وَلَا عَنْ ظُهُوْرِهِمْ وَلَا هُمْ يُنْصَرُوْنَ ( الأنبياء: ٣٩ )
If
لَوْ
अगर
knew
يَعْلَمُ
जानलें
those who
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
disbelieved
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
(the) time
حِينَ
जिस वक़्त
(when) not
لَا
ना वो रोक सकेंगे
they will avert
يَكُفُّونَ
ना वो रोक सकेंगे
from
عَن
अपने चहरों से
their faces
وُجُوهِهِمُ
अपने चहरों से
the Fire
ٱلنَّارَ
आग को
and not
وَلَا
और ना
from
عَن
अपनी पुश्तों से
their backs
ظُهُورِهِمْ
अपनी पुश्तों से
and not
وَلَا
और ना
they
هُمْ
वो
will be helped!
يُنصَرُونَ
वो मदद किए जाऐंगे
Law ya'lamu allatheena kafaroo heena la yakuffoona 'an wujoohihimu alnnara wala 'an thuhoorihim wala hum yunsaroona (al-ʾAnbiyāʾ 21:39)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अगर इनकार करनेवालें उस समय को जानते, जबकि वे न तो अपने चहरों की ओर आग को रोक सकेंगे और न अपनी पीठों की ओर से और न उन्हें कोई सहायता ही पहुँच सकेगी तो (यातना की जल्दी न मचाते)
English Sahih:
If those who disbelieved but knew the time when they will not avert the Fire from their faces or from their backs and they will not be aided... ([21] Al-Anbya : 39)