مَنْ كَانَ يَظُنُّ اَنْ لَّنْ يَّنْصُرَهُ اللّٰهُ فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ فَلْيَمْدُدْ بِسَبَبٍ اِلَى السَّمَاۤءِ ثُمَّ لْيَقْطَعْ فَلْيَنْظُرْ هَلْ يُذْهِبَنَّ كَيْدُهٗ مَا يَغِيْظُ ( الحج: ١٥ )
Man kana yathunnu an lan yansurahu Allahu fee alddunya waalakhirati falyamdud bisababin ila alssamai thumma liyaqta' falyanthur hal yuthhibanna kayduhu ma yagheethu (al-Ḥajj 22:15)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो कोई यह समझता है कि अल्लाह दुनिया औऱ आख़िरत में उसकी (रसूल की) कदापि कोई सहायता न करेगा तो उसे चाहिए कि वह आकाश की ओर एक रस्सी ताने, फिर (अल्लाह की सहायता के सिलसिले को) काट दे। फिर देख ले कि क्या उसका उपाय उस चीज़ को दूर कर सकता है जो उसे क्रोध में डाले हुए है
English Sahih:
Whoever should think that Allah will not support him [i.e., Prophet Muhammad (^)] in this world and the Hereafter – let him extend a rope to the ceiling, then cut off [his breath], and let him see: will his effort remove that which enrages [him]? ([22] Al-Hajj : 15)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
जो शख्स (गुस्से में) ये बदगुमानी करता है कि दुनिया और आख़ेरत में खुदा उसकी हरग़िज मदद न करेगा तो उसे चाहिए कि आसमान तक रस्सी ताने (और अपने गले में फाँसी डाल दे) फिर उसे काट दे (ताकि घुट कर मर जाए) फिर देखिए कि जो चीज़ उसे गुस्से में ला रही थी उसे उसकी तद्बीर दूर दफ़ा कर देती है