اَلنَّبِيُّ اَوْلٰى بِالْمُؤْمِنِيْنَ مِنْ اَنْفُسِهِمْ وَاَزْوَاجُهٗٓ اُمَّهٰتُهُمْ ۗوَاُولُوا الْاَرْحَامِ بَعْضُهُمْ اَوْلٰى بِبَعْضٍ فِيْ كِتٰبِ اللّٰهِ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُهٰجِرِيْنَ اِلَّآ اَنْ تَفْعَلُوْٓا اِلٰٓى اَوْلِيَاۤىِٕكُمْ مَّعْرُوْفًا ۗ كَانَ ذٰلِكَ فِى الْكِتٰبِ مَسْطُوْرًا ( الأحزاب: ٦ )
Alnnabiyyu awla bialmumineena min anfusihim waazwajuhu ommahatuhum waoloo alarhami ba'duhum awla biba'din fee kitabi Allahi mina almumineena waalmuhajireena illa an taf'aloo ila awliyaikum ma'roofan kana thalika fee alkitabi mastooran (al-ʾAḥzāb 33:6)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
नबी का हक़ ईमानवालों पर स्वयं उनके अपने प्राणों से बढ़कर है। और उसकी पत्नियों उनकी माएँ है। और अल्लाह के विधान के अनुसार सामान्य मोमिनों और मुहाजिरों की अपेक्षा नातेदार आपस में एक-दूसरे से अधिक निकट है। यह और बात है कि तुम अपने साथियों के साथ कोई भलाई करो। यह बात किताब में लिखी हुई है
English Sahih:
The Prophet is more worthy of the believers than themselves, and his wives are [in the position of] their mothers. And those of [blood] relationship are more entitled [to inheritance] in the decree of Allah than the [other] believers and the emigrants, except that you may do to your close associates a kindness [through bequest]. That was in the Book inscribed. ([33] Al-Ahzab : 6)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
नबी तो मोमिनीन से खुद उनकी जानों से भी बढ़कर हक़ रखते हैं (क्योंकि वह गोया उम्मत के मेहरबान बाप हैं) और उनकी बीवियाँ (गोया) उनकी माएँ हैं और मोमिनीन व मुहाजिरीन में से (जो लोग बाहम) क़राबतदार हैं। किताबें खुदा की रूह से (ग़ैरों की निस्बत) एक दूसरे के (तर्के के) ज्यादा हक़दार हैं मगर (जब) तुम अपने दोस्तों के साथ सुलूक करना चाहो (तो दूसरी बात है) ये तो किताबे (खुदा) में लिखा हुआ (मौजूद) है