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وَاِذَا ضَرَبْتُمْ فِى الْاَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ اَنْ تَقْصُرُوْا مِنَ الصَّلٰوةِ ۖ اِنْ خِفْتُمْ اَنْ يَّفْتِنَكُمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْاۗ اِنَّ الْكٰفِرِيْنَ كَانُوْا لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِيْنًا   ( النساء: ١٠١ )

And when
وَإِذَا
और जब
you travel
ضَرَبْتُمْ
सफ़र करो तुम
in
فِى
ज़मीन में
the earth
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
then not
فَلَيْسَ
तो नहीं है
upon you
عَلَيْكُمْ
तुम पर
(is) any blame
جُنَاحٌ
कोई गुनाह
that
أَن
कि
you shorten
تَقْصُرُوا۟
तुम क़सर कर लो
[of]
مِنَ
नमाज में से
the prayer
ٱلصَّلَوٰةِ
नमाज में से
if
إِنْ
अगर
you fear
خِفْتُمْ
ख़ौफ़ हो तुम्हें
that
أَن
कि
(may) harm you
يَفْتِنَكُمُ
फ़ितने में डालेंगे तुम्हें
those who
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
disbelieved
كَفَرُوٓا۟ۚ
कुफ़्र किया
Indeed
إِنَّ
बेशक
the disbelievers
ٱلْكَٰفِرِينَ
काफ़िर
are
كَانُوا۟
हैं
for you
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
an enemy
عَدُوًّا
दुश्मन
open
مُّبِينًا
खुल्लम-खुल्ला

Waitha darabtum fee alardi falaysa 'alaykum junahun an taqsuroo mina alssalati in khiftum an yaftinakumu allatheena kafaroo inna alkafireena kanoo lakum 'aduwwan mubeenan (an-Nisāʾ 4:101)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु है

English Sahih:

And when you travel throughout the land, there is no blame upon you for shortening the prayer, [especially] if you fear that those who disbelieve may disrupt [or attack] you. Indeed, the disbelievers are ever to you a clear enemy. ([4] An-Nisa : 101)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(मुसलमानों जब तुम रूए ज़मीन पर सफ़र करो) और तुमको इस अम्र का ख़ौफ़ हो कि कुफ्फ़ार (असनाए नमाज़ में) तुमसे फ़साद करेंगे तो उसमें तुम्हारे वास्ते कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि नमाज़ में कुछ कम कर दिया करो बेशक कुफ्फ़ार तो तुम्हारे ख़ुल्लम ख़ुल्ला दुश्मन हैं