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وَاِذَا حَضَرَ الْقِسْمَةَ اُولُوا الْقُرْبٰى وَالْيَتٰمٰى وَالْمَسٰكِيْنُ فَارْزُقُوْهُمْ مِّنْهُ وَقُوْلُوْا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوْفًا  ( النساء: ٨ )

And when
وَإِذَا
और जब
present
حَضَرَ
हाज़िर/मौजूद हों
(at) the (time of) division
ٱلْقِسْمَةَ
तक़सीम के वक़्त
(of)
أُو۟لُوا۟
क़राबतदार
the relatives
ٱلْقُرْبَىٰ
क़राबतदार
and the orphans
وَٱلْيَتَٰمَىٰ
और यतीम
and the poor
وَٱلْمَسَٰكِينُ
और मसाकीन
then provide them
فَٱرْزُقُوهُم
तो तुम दो उन्हें
from it
مِّنْهُ
उस (माल) में से
and speak
وَقُولُوا۟
और कहो
to them
لَهُمْ
उनसे
words
قَوْلًا
बात
(of) kindness
مَّعْرُوفًا
भली/अच्छी

Waitha hadara alqismata oloo alqurba waalyatama waalmasakeenu faorzuqoohum minhu waqooloo lahum qawlan ma'roofan (an-Nisāʾ 4:8)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और जब बाँटने के समय नातेदार और अनाथ और मुहताज उपस्थित हो तो उन्हें भी उसमें से (उनका हिस्सा) दे दो और उनसे भली बात करो

English Sahih:

And when [other] relatives and orphans and the needy are present at the [time of] division, then provide for them [something] out of it [i.e., the estate] and speak to them words of appropriate kindness. ([4] An-Nisa : 8)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और जब (तर्क की) तक़सीम के वक्त (वह) क़राबतदार (जिनका कोई हिस्सा नहीं) और यतीम बच्चे और मोहताज लोग आ जाएं तो उन्हे भी कुछ उसमें से दे दो और उसे अच्छी तरह (उनवाने शाइस्ता से) बात करो