قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ثُمَّ كَفَرْتُمْ بِهٖ مَنْ اَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِيْ شِقَاقٍۢ بَعِيْدٍ ( فصلت: ٥٢ )
Say
قُلْ
कह दीजिए
"You see
أَرَءَيْتُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
if
إِن
अगर
it is
كَانَ
है वो
from
مِنْ
अल्लाह की तरफ़ से
from
عِندِ
अल्लाह की तरफ़ से
Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
then
ثُمَّ
फिर
you disbelieve
كَفَرْتُم
कुफ़्र किया तुमने
in it
بِهِۦ
उसका
who
مَنْ
कौन
(is) more astray
أَضَلُّ
ज़्यादा भटका हुआ है
than (one) who
مِمَّنْ
उससे जो
he
هُوَ
वो
(is) in
فِى
मुख़ालफ़त में है
opposition
شِقَاقٍۭ
मुख़ालफ़त में है
far?"
بَعِيدٍ
बहुत दूर की
Qul araaytum in kana min 'indi Allahi thumma kafartum bihi man adallu mimman huwa fee shiqaqin ba'eedin (Fuṣṣilat 41:52)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
कह दो, 'क्या तुमने विचार किया, यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर सो ही हुआ और तुमने उसका इनकार किया तो उससे बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो विरोध में बहुत दूर जा पड़ा हो?'
English Sahih:
Say, "Have you considered: if it [i.e., the Quran] is from Allah and you disbelieved in it, who would be more astray than one who is in extreme dissension?" ([41] Fussilat : 52)