وَلَقَدْ مَكَّنّٰهُمْ فِيْمَآ اِنْ مَّكَّنّٰكُمْ فِيْهِ وَجَعَلْنَا لَهُمْ سَمْعًا وَّاَبْصَارًا وَّاَفْـِٕدَةًۖ فَمَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ سَمْعُهُمْ وَلَآ اَبْصَارُهُمْ وَلَآ اَفْـِٕدَتُهُمْ مِّنْ شَيْءٍ اِذْ كَانُوْا يَجْحَدُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ࣖ ( الأحقاف: ٢٦ )
Walaqad makkannahum feema in makkannakum feehi waja'alna lahum sam'an waabsaran waafidatan fama aghna 'anhum sam'uhum wala absaruhum wala afidatuhum min shayin ith kanoo yajhadoona biayati Allahi wahaqa bihim ma kanoo bihi yastahzioona (al-ʾAḥq̈āf 46:26)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
हमने उन्हें उन चीज़ों में जमाव और सामर्थ्य प्रदान की थी, जिनमें तुम्हें जमाव और सामर्थ्य नहीं प्रदान की। औऱ हमने उन्हें कान, आँखें और दिल दिए थे। किन्तु न तो उनके कान उनके कुछ काम आए औऱ न उनकी आँखे और न उनके दिल ही। क्योंकि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और जिस चीज़ की वे हँसी उड़ाते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा
English Sahih:
And We had certainly established them in such as We have not established you, and We made for them hearing and vision and hearts [i.e., intellect]. But their hearing and vision and hearts availed them not from anything [of the punishment] when they were [continually] rejecting the signs of Allah; and they were enveloped by what they used to ridicule. ([46] Al-Ahqaf : 26)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और हमने उनको ऐसे कामों में मक़दूर दिये थे जिनमें तुम्हें (कुछ भी) मक़दूर नहीं दिया और उन्हें कान और ऑंख और दिल (सब कुछ दिए थे) तो चूँकि वह लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार करने लगे तो न उनके कान ही कुछ काम आए और न उनकी ऑंखें और न उनके दिल और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे उसने उनको हर तरफ से घेर लिया