يٰقَوْمَنَآ اَجِيْبُوْا دَاعِيَ اللّٰهِ وَاٰمِنُوْا بِهٖ يَغْفِرْ لَكُمْ مِّنْ ذُنُوْبِكُمْ وَيُجِرْكُمْ مِّنْ عَذَابٍ اَلِيْمٍ ( الأحقاف: ٣١ )
O our people!
يَٰقَوْمَنَآ
ऐ हमारी क़ौम
Respond
أَجِيبُوا۟
जवाब दो
(to the) caller
دَاعِىَ
अल्लाह के दाई को
(of) Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के दाई को
and believe
وَءَامِنُوا۟
और ईमान ले आओ
in him
بِهِۦ
उस पर
He will forgive
يَغْفِرْ
वो बख़्श देगा
for you
لَكُم
तुम्हारे लिए
of
مِّن
तुम्हारे गुनाहों को
your sins
ذُنُوبِكُمْ
तुम्हारे गुनाहों को
and will protect you
وَيُجِرْكُم
और वो पनाह देगा तुम्हें
from
مِّنْ
दर्दनाक अज़ाब से
a punishment
عَذَابٍ
दर्दनाक अज़ाब से
painful
أَلِيمٍ
दर्दनाक अज़ाब से
Ya qawmana ajeeboo da'iya Allahi waaminoo bihi yaghfir lakum min thunoobikum wayujirkum min 'athabin aleemin (al-ʾAḥq̈āf 46:31)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ हमारी क़ौम के लोगो! अल्लाह के आमंत्रणकर्त्ता का आमंत्रण स्वीकार करो और उसपर ईमान लाओ। अल्लाह तुम्हें क्षमा करके गुनाहों से तुम्हें पाक कर देगा और दुखद यातना से तुम्हें बचाएगा
English Sahih:
O our people, respond to the Caller [i.e., Messenger] of Allah and believe in him; He [i.e., Allah] will forgive for you your sins and protect you from a painful punishment. ([46] Al-Ahqaf : 31)