وَيَقُوْلُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَوْلَا نُزِّلَتْ سُوْرَةٌ ۚفَاِذَآ اُنْزِلَتْ سُوْرَةٌ مُّحْكَمَةٌ وَّذُكِرَ فِيْهَا الْقِتَالُ ۙرَاَيْتَ الَّذِيْنَ فِيْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ يَّنْظُرُوْنَ اِلَيْكَ نَظَرَ الْمَغْشِيِّ عَلَيْهِ مِنَ الْمَوْتِۗ فَاَوْلٰى لَهُمْۚ ( محمد: ٢٠ )
Wayaqoolu allatheena amanoo lawla nuzzilat sooratun faitha onzilat sooratun muhkamatun wathukira feeha alqitalu raayta allatheena fee quloobihim maradun yanthuroona ilayka nathara almaghshiyyi 'alayhi mina almawti faawla lahum (Muḥammad 47:20)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो लोग ईमान लाए वे कहते है, 'कोई सूरा क्यों नहीं उतरी?' किन्तु जब एक पक्की सूरा अवतरित की जाती है, जिसमें युद्ध का उल्लेख होता है, तो तुम उन लोगों को देखते हो जिनके दिलों में रोग है कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार देखते है जैसे किसी पर मृत्यु की बेहोशी छा गई हो। तो अफ़सोस है उनके हाल पर!
English Sahih:
Those who believe say, "Why has a Surah not been sent down?" But when a precise Surah is revealed and battle is mentioned therein, you see those in whose hearts is disease [i.e., hypocrisy] looking at you with a look of one overcome by death. And more appropriate for them [would have been] ([47] Muhammad : 20)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और मोमिनीन कहते हैं कि (जेहाद के बारे में) कोई सूरा क्यों नहीं नाज़िल होता लेकिन जब कोई साफ़ सरीही मायनों का सूरा नाज़िल हुआ और उसमें जेहाद का बयान हो तो जिन लोगों के दिल में (नेफ़ाक़) का मर्ज़ है तुम उनको देखोगे कि तुम्हारी तरफ़ इस तरह देखते हैं जैसे किसी पर मौत की बेहोशी (छायी) हो (कि उसकी ऑंखें पथरा जाएं) तो उन पर वाए हो