لِّتُؤْمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَتُعَزِّرُوْهُ وَتُوَقِّرُوْهُۗ وَتُسَبِّحُوْهُ بُكْرَةً وَّاَصِيْلًا ( الفتح: ٩ )
That you may believe
لِّتُؤْمِنُوا۟
ताकि तुम ईमान लाओ
in Allah
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
and His Messenger
وَرَسُولِهِۦ
और उसके रसूल पर
and (may) honor him
وَتُعَزِّرُوهُ
और तुम क़ुव्वत दो उसे
and respect him
وَتُوَقِّرُوهُ
और तुम ताज़ीम करो उसकी
and glorify Him
وَتُسَبِّحُوهُ
और तुम तस्बीह बयान करो
morning
بُكْرَةً
सुबह
and evening
وَأَصِيلًا
और शाम
Lituminoo biAllahi warasoolihi watu'azziroohu watuwaqqiroohu watusabbihoohu bukratan waaseelan (al-Fatḥ 48:9)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ, उसे सहायता पहुँचाओ और उसका आदर करो, और प्रातःकाल और संध्या समय उसकी तसबीह करते रहो
English Sahih:
That you [people] may believe in Allah and His Messenger and honor him and respect him [i.e., the Prophet (^)] and exalt Him [i.e., Allah] morning and afternoon. ([48] Al-Fath : 9)