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وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمْ عِنْدَ الْبَيْتِ اِلَّا مُكَاۤءً وَّتَصْدِيَةًۗ فَذُوْقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُوْنَ  ( الأنفال: ٣٥ )

And not
وَمَا
और ना
was
كَانَ
थी
their prayer
صَلَاتُهُمْ
नमाज़ उनकी
at
عِندَ
पास
the House
ٱلْبَيْتِ
बैतुल्लाह के
except
إِلَّا
मगर
whistling
مُكَآءً
सीटियाँ बजाना
and clapping
وَتَصْدِيَةًۚ
और तालियाँ बजाना
So taste
فَذُوقُوا۟
पस चख़ो
the punishment
ٱلْعَذَابَ
अज़ाब
because
بِمَا
बवजह उसके जो
you used to
كُنتُمْ
थे तुम
disbelieve
تَكْفُرُونَ
तुम कुफ़्र करते

Wama kana salatuhum 'inda albayti illa mukaan watasdiyatan fathooqoo al'athaba bima kuntum takfuroona (al-ʾAnfāl 8:35)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

उनकी नमाज़़ इस घर (काबा) के पास सीटियाँ बजाने और तालियाँ पीटने के अलावा कुछ भी नहीं होती। तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो

English Sahih:

And their prayer at the House [i.e., the Ka’bah] was not except whistling and handclapping. So taste the punishment for what you disbelieved [i.e., practiced of deviations]. ([8] Al-Anfal : 35)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और ख़ानाए काबे के पास सीटियॉ तालिया बजाने के सिवा उनकी नमाज ही क्या थी तो (ऐ काफिरों) जब तुम कुफ्र किया करते थे उसकी सज़ा में (पड़े) अज़ाब के मज़े चखो