وَالَّذِيْنَ اتَّخَذُوْا مَسْجِدًا ضِرَارًا وَّكُفْرًا وَّتَفْرِيْقًاۢ بَيْنَ الْمُؤْمِنِيْنَ وَاِرْصَادًا لِّمَنْ حَارَبَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ مِنْ قَبْلُ ۗوَلَيَحْلِفُنَّ اِنْ اَرَدْنَآ اِلَّا الْحُسْنٰىۗ وَاللّٰهُ يَشْهَدُ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ ( التوبة: ١٠٧ )
Waallatheena ittakhathoo masjidan diraran wakufran watafreeqan bayna almumineena wairsadan liman haraba Allaha warasoolahu min qablu walayahlifunna in aradna illa alhusna waAllahu yashhadu innahum lakathiboona (at-Tawbah 9:107)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और कुछ ऐसे लोग भी हैं , जिन्होंने मस्जिद बनाई इसलिए कि नुक़सान पहुँचाएँ और कुफ़्र करें और इसलिए कि ईमानवालों के बीच फूट डाले और उस व्यक्ति के घात लगाने का ठिकाना बनाएँ, जो इससे पहले अल्लाह और उसके रसूल से लड़ चुका है। वे निश्चय ही क़समें खाएँगे कि 'हमने तो बस अच्छा ही चाहा था।' किन्तु अल्लाह गवाही देता है कि वे बिलकुल झूठे है
English Sahih:
And [there are] those [hypocrites] who took for themselves a mosque for causing harm and disbelief and division among the believers and as a station for whoever had warred against Allah and His Messenger before. And they will surely swear, "We intended only the best." And Allah testifies that indeed they are liars. ([9] At-Tawbah : 107)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और (वह लोग भी मुनाफिक़ हैं) जिन्होने (मुसलमानों के) नुकसान पहुंचाने और कुफ़्र करने वाले और मोमिनीन के दरमियान तफरक़ा (फूट) डालते और उस शख़्स की घात में बैठने के वास्ते मस्जिद बनाकर खड़ी की है जो ख़ुदा और उसके रसूल से पहले लड़ चुका है (और लुत्फ़ तो ये है कि) ज़रूर क़समें खाएगें कि हमने भलाई के सिवा कुछ और इरादा ही नहीं किया और ख़ुदा ख़ुद गवाही देता है