لَقَدِ ابْتَغَوُا الْفِتْنَةَ مِنْ قَبْلُ وَقَلَّبُوْا لَكَ الْاُمُوْرَ حَتّٰى جَاۤءَ الْحَقُّ وَظَهَرَ اَمْرُ اللّٰهِ وَهُمْ كٰرِهُوْنَ ( التوبة: ٤٨ )
Verily
لَقَدِ
अलबत्ता तहक़ीक़
they had sought
ٱبْتَغَوُا۟
उन्होंने (डालना) चाहा
dissension
ٱلْفِتْنَةَ
फ़ितना
before
مِن
इससे पहले
before
قَبْلُ
इससे पहले
and had upset
وَقَلَّبُوا۟
और उलट-पुलट किए
for you
لَكَ
आपके लिए
the matters
ٱلْأُمُورَ
मामलात
until
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
came
جَآءَ
आ गया
the truth
ٱلْحَقُّ
हक़
and became manifest
وَظَهَرَ
और ज़ाहिर हो गया
(the) Order of Allah
أَمْرُ
हुक्म
(the) Order of Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह का
while they
وَهُمْ
जबकि वो
disliked (it)
كَٰرِهُونَ
नापसंद करने वाले थे
Laqadi ibtaghawoo alfitnata min qablu waqallaboo laka alomoora hatta jaa alhaqqu wathahara amru Allahi wahum karihoona (at-Tawbah 9:48)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उन्होंने तो इससे पहले भी उपद्रव मचाना चाहा था और वे तुम्हारे विरुद्ध घटनाओं और मामलों के उलटने-पलटने में लगे रहे, यहाँ तक कि हक़ आ गया और अल्लाह को आदेश प्रकट होकर रहा, यद्यपि उन्हें अप्रिय ही लगता रहा
English Sahih:
They had already desired dissension before and had upset matters for you until the truth came and the ordinance [i.e., victory] of Allah appeared, while they were averse. ([9] At-Tawbah : 48)