وَلَا تُصَلِّ عَلٰٓى اَحَدٍ مِّنْهُمْ مَّاتَ اَبَدًا وَّلَا تَقُمْ عَلٰى قَبْرِهٖۗ اِنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَمَاتُوْا وَهُمْ فٰسِقُوْنَ ( التوبة: ٨٤ )
And not
وَلَا
और ना
you pray
تُصَلِّ
आप नमाज़ पढ़िए
for
عَلَىٰٓ
किसी एक पर
any
أَحَدٍ
किसी एक पर
of them
مِّنْهُم
इनमें से
who dies
مَّاتَ
मर जाए (जो)
ever
أَبَدًا
कभी भी
and not
وَلَا
और ना
you stand
تَقُمْ
आप खड़े हों
by
عَلَىٰ
उसकी क़ब्र पर
his grave
قَبْرِهِۦٓۖ
उसकी क़ब्र पर
Indeed they
إِنَّهُمْ
बेशक उन्होंने
disbelieved
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
in Allah
بِٱللَّهِ
अल्लाह से
and His Messenger
وَرَسُولِهِۦ
और उसके रसूल से
and died
وَمَاتُوا۟
और वो मर गए
while they were
وَهُمْ
इस हाल में कि वो
defiantly disobedient
فَٰسِقُونَ
फ़ासिक़ थे
Wala tusalli 'ala ahadin minhum mata abadan wala taqum 'ala qabrihi innahum kafaroo biAllahi warasoolihi wamatoo wahum fasiqoona (at-Tawbah 9:84)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
औऱ उनमें से जिस किसी व्यक्ति की मृत्यु हो उसकी जनाज़े की नमाज़ कभी न पढ़ना और न कभी उसकी क़ब्र पर खड़े होना। उन्होंने तो अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और मरे इस दशा में कि अवज्ञाकारी थे
English Sahih:
And do not pray [the funeral prayer, O Muhammad], over any of them who has died – ever – or stand at his grave. Indeed, they disbelieved in Allah and His Messenger and died while they were defiantly disobedient. ([9] At-Tawbah : 84)