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وَمِنَ الْاَعْرَابِ مَنْ يُّؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَالْيَوْمِ الْاٰخِرِ وَيَتَّخِذُ مَا يُنْفِقُ قُرُبٰتٍ عِنْدَ اللّٰهِ وَصَلَوٰتِ الرَّسُوْلِ ۗ اَلَآ اِنَّهَا قُرْبَةٌ لَّهُمْ ۗ سَيُدْخِلُهُمُ اللّٰهُ فِيْ رَحْمَتِهٖ ۗاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ  ( التوبة: ٩٩ )

But among
وَمِنَ
और देहातियों/बदवियों में से
the bedouins
ٱلْأَعْرَابِ
और देहातियों/बदवियों में से
(is he) who
مَن
कोई है जो
believes
يُؤْمِنُ
ईमान रखता है
in Allah
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
and the Day
وَٱلْيَوْمِ
और आख़िरी दिन पर
the Last
ٱلْءَاخِرِ
और आख़िरी दिन पर
and takes
وَيَتَّخِذُ
और वो बना लेता है
what
مَا
उसे जो
he spends
يُنفِقُ
वो ख़र्च करता है
(as) means of nearness
قُرُبَٰتٍ
क़ुरबतों (का ज़रिया)
with
عِندَ
अल्लाह के नज़दीक
Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के नज़दीक
and blessings
وَصَلَوَٰتِ
और दुआओं का
(of) the Messenger
ٱلرَّسُولِۚ
रसूल की
Behold!
أَلَآ
ख़बरदार
Indeed, it
إِنَّهَا
बेशक वो
(is) a means of nearness
قُرْبَةٌ
क़ुरबत (का ज़रिया) है
for them
لَّهُمْۚ
उनके लिए
Allah will admit them
سَيُدْخِلُهُمُ
अनक़रीब दाख़िल करेगा उन्हें
Allah will admit them
ٱللَّهُ
अल्लाह
to
فِى
अपनी रहमत में
His Mercy
رَحْمَتِهِۦٓۗ
अपनी रहमत में
Indeed
إِنَّ
बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
(is) Oft-Forgiving
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
Most Merciful
رَّحِيمٌ
बहुत रहम करने वाला है

Wamina ala'rabi man yuminu biAllahi waalyawmi alakhiri wayattakhithu ma yunfiqu qurubatin 'inda Allahi wasalawati alrrasooli ala innaha qurbatun lahum sayudkhiluhumu Allahu fee rahmatihi inna Allaha ghafoorun raheemun (at-Tawbah 9:99)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और बद्दु,ओं में ऐसे भी लोग है जो अल्लाह और अन्तिम दिन को मानते है और जो कुछ ख़र्च करते है, उसे अल्लाह के यहाँ निकटताओं का और रसूल की दुआओं को प्राप्त करने का साधन बनाते है। हाँ! निस्संदेह वह उनके हक़ में निकटता ही है। अल्लाह उन्हें शीघ्र ही अपनी दयालुता में दाख़िल करेगा। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

English Sahih:

But among the bedouins are some who believe in Allah and the Last Day and consider what they spend as means of nearness to Allah and of [obtaining] invocations of the Messenger. Unquestionably, it is a means of nearness for them. Allah will admit them to His mercy. Indeed, Allah is Forgiving and Merciful. ([9] At-Tawbah : 99)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और कुछ देहाती तो ऐसे भी हैं जो ख़ुदा और आख़िरत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते है उसे ख़ुदा की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहो वाक़ई ये (ख़ैरात) ज़रूर उनके तक़र्रुब (क़रीब होने का) का बाइस है ख़ुदा उन्हें बहुत जल्द अपनी रहमत में दाख़िल करेगा बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है