قَالَ يٰقَوْمِ اَرَءَيْتُمْ اِنْ كُنْتُ عَلٰى بَيِّنَةٍ مِّنْ رَّبِّيْ وَاٰتٰىنِيْ رَحْمَةً مِّنْ عِنْدِهٖ فَعُمِّيَتْ عَلَيْكُمْۗ اَنُلْزِمُكُمُوْهَا وَاَنْتُمْ لَهَا كٰرِهُوْنَ ( هود: ٢٨ )
Qala ya qawmi araaytum in kuntu 'ala bayyinatin min rabbee waatanee rahmatan min 'indihi fa'ummiyat 'alaykum anulzimukumooha waantum laha karihoona (Hūd 11:28)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से दयालुता भी प्रदान की है, फिर वह तुम्हें न सूझे तो क्या हम हठात उसे तुमपर चिपका दें, जबकि वह तुम्हें अप्रिय है?
English Sahih:
He said, "O my people, have you considered: if I should be upon clear evidence from my Lord while He has given me mercy from Himself but it has been made unapparent to you, should we force it upon you while you are averse to it? ([11] Hud : 28)