لَهٗ دَعْوَةُ الْحَقِّۗ وَالَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖ لَا يَسْتَجِيْبُوْنَ لَهُمْ بِشَيْءٍ اِلَّا كَبَاسِطِ كَفَّيْهِ اِلَى الْمَاۤءِ لِيَبْلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَالِغِهٖۗ وَمَا دُعَاۤءُ الْكٰفِرِيْنَ اِلَّا فِيْ ضَلٰلٍ ( الرعد: ١٤ )
Lahu da'watu alhaqqi waallatheena yad'oona min doonihi la yastajeeboona lahum bishayin illa kabasiti kaffayhi ila almai liyablugha fahu wama huwa bibalighihi wama du'ao alkafireena illa fee dalalin (ar-Raʿd 13:14)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उसी के लिए सच्ची पुकार है। उससे हटकर जिनको वे पुकारते है, वे उनकी पुकार का कुछ भी उत्तर नहीं देते। बस यह ऐसा ही होता है जैसे कोई अपने दोनों हाथ पानी की ओर इसलिए फैलाए कि वह उसके मुँह में पहुँच जाए, हालाँकि वह उसतक पहुँचनेवाला नहीं। कुफ़्र करनेवालों की पुकार तो बस भटकने ही के लिए होती है
English Sahih:
To Him [alone] is the supplication of truth. And those they call upon besides Him do not respond to them with a thing, except as one who stretches his hands toward water [from afar, calling it] to reach his mouth, but it will not reach it [thus]. And the supplication of the disbelievers is not but in error [i.e., futility]. ([13] Ar-Ra'd : 14)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(मुसीबत के वक्त) उसी का (पुकारना) ठीक पुकारना है और जो लोग उसे छोड़कर (दूसरों को) पुकारते हैं वह तो उनकी कुछ सुनते तक नहीं मगर जिस तरह कोई शख़्श (बग़ैर उंगलियां मिलाए) अपनी दोनों हथेलियाँ पानी की तरफ फैलाए ताकि पानी उसके मुँह में पहुँच जाए हालॉकि वह किसी तरह पहुँचने वाला नहीं और (इसी तरह) काफिरों की दुआ गुमराही में (पड़ी बहकी फिरा करती है)