وَاِنْ عَاقَبْتُمْ فَعَاقِبُوْا بِمِثْلِ مَا عُوْقِبْتُمْ بِهٖۗ وَلَىِٕنْ صَبَرْتُمْ لَهُوَ خَيْرٌ لِّلصّٰبِرِيْنَ ( النحل: ١٢٦ )
And if
وَإِنْ
और अगर
you retaliate
عَاقَبْتُمْ
बदला लो तुम
then retaliate
فَعَاقِبُوا۟
तो बदला लो
with the like
بِمِثْلِ
मानिन्द
of what
مَا
उसके जो
you were afflicted
عُوقِبْتُم
तकलीफ़ दिए गए तुम
with [it]
بِهِۦۖ
साथ जिसके
But if
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
you are patient
صَبَرْتُمْ
सब्र करो तुम
surely (it) is
لَهُوَ
अलबत्ता वो
better
خَيْرٌ
बहतर है
for those who are patient
لِّلصَّٰبِرِينَ
सब्र करने वालों के लिए
Wain 'aqabtum fa'aqiboo bimithli ma 'ooqibtum bihi walain sabartum lahuwa khayrun lilssabireena (an-Naḥl 16:126)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और यदि तुम बदला लो तो उतना ही जितना तुम्हें कष्ट पहुँचा हो, किन्तु यदि तुम सब्र करो तो निश्चय ही यह सब्र करनेवालों के लिए ज़्यादा अच्छा है
English Sahih:
And if you punish [an enemy, O believers], punish with an equivalent of that with which you were harmed. But if you are patient – it is better for those who are patient. ([16] An-Nahl : 126)