وَمَآ اَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتٰبَ اِلَّا لِتُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِى اخْتَلَفُوْا فِيْهِۙ وَهُدًى وَّرَحْمَةً لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ( النحل: ٦٤ )
And not
وَمَآ
और नहीं
We revealed
أَنزَلْنَا
नाज़िल किया हमने
to you
عَلَيْكَ
आप पर
the Book
ٱلْكِتَٰبَ
किताब को
except
إِلَّا
मगर
that you make clear
لِتُبَيِّنَ
ताकि आप वाज़ेह करें
to them
لَهُمُ
उनके लिए
that which
ٱلَّذِى
वो चीज़
they differed
ٱخْتَلَفُوا۟
उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया
in it
فِيهِۙ
जिसमें
and (as) a guidance
وَهُدًى
और हिदायत
and mercy
وَرَحْمَةً
और रहमत है
for a people
لِّقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
who believe
يُؤْمِنُونَ
जो ईमान रखते हों
Wama anzalna 'alayka alkitaba illa litubayyina lahumu allathee ikhtalafoo feehi wahudan warahmatan liqawmin yuminoona (an-Naḥl 16:64)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
हमने यह किताब तुमपर इसीलिए अवतरित की है कि जिसमें वे विभेद कर रहे है उसे तुम उनपर स्पष्टा कर दो और यह मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो ईमान लाएँ
English Sahih:
And We have not revealed to you the Book, [O Muhammad], except for you to make clear to them that wherein they have differed and as guidance and mercy for a people who believe. ([16] An-Nahl : 64)