۞ ضَرَبَ اللّٰهُ مَثَلًا عَبْدًا مَّمْلُوْكًا لَّا يَقْدِرُ عَلٰى شَيْءٍ وَّمَنْ رَّزَقْنٰهُ مِنَّا رِزْقًا حَسَنًا فَهُوَ يُنْفِقُ مِنْهُ سِرًّا وَّجَهْرًاۗ هَلْ يَسْتَوٗنَ ۚ اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ ۗبَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ( النحل: ٧٥ )
Daraba Allahu mathalan 'abdan mamlookan la yaqdiru 'ala shayin waman razaqnahu minna rizqan hasanan fahuwa yunfiqu minhu sirran wajahran hal yastawoona alhamdu lillahi bal aktharuhum la ya'lamoona (an-Naḥl 16:75)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अल्लाह ने एक मिसाल पेश की है: एक ग़ुलाम है, जिसपर दूसरे का अधिकार है, उसे किसी चीज़ पर अधिकार प्राप्त नहीं। इसके विपरीत एक वह व्यक्ति है, जिसे हमने अपनी ओर से अच्छी रोज़ी प्रदान की है, फिर वह उसमें से खुले और छिपे ख़र्च करता है। तो क्या वे परस्पर समान है? प्रशंसा अल्लाह के लिए है! किन्तु उनमें अधिकतर लोग जानते नहीं
English Sahih:
Allah presents an example: a slave [who is] owned and unable to do a thing and he to whom We have provided from Us good provision, so he spends from it secretly and publicly. Can they be equal? Praise to Allah! But most of them do not know. ([16] An-Nahl : 75)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
एक मसल ख़ुदा ने बयान फरमाई कि एक ग़ुलाम है जो दूसरे के कब्जे में है (और) कुछ भी एख्तियार नहीं रखता और एक शख़्श वह है कि हमने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (खासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उसमें से छिपा के दिखा के (ग़रज़ हर तरह ख़ुदा की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनो बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह (कि वह भी उसके मुक़र्रर हैं) मगर उनके बहुतेरे (इतना भी) नहीं जानते