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وَقُرْاٰنًا فَرَقْنٰهُ لِتَقْرَاَهٗ عَلَى النَّاسِ عَلٰى مُكْثٍ وَّنَزَّلْنٰهُ تَنْزِيْلًا   ( الإسراء: ١٠٦ )

And the Quran
وَقُرْءَانًا
और क़ुरआन को
We have divided
فَرَقْنَٰهُ
अलग-अलग (नाज़िल) किया हमने उसे
that you might recite it
لِتَقْرَأَهُۥ
ताकि आप पढ़ें उसे
to
عَلَى
लोगों पर
the people
ٱلنَّاسِ
लोगों पर
at
عَلَىٰ
ठहर-ठहर कर
intervals
مُكْثٍ
ठहर-ठहर कर
And We have revealed it
وَنَزَّلْنَٰهُ
और नाज़िल किया हमने इसे
(in) stages
تَنزِيلًا
थोड़ा-थोड़ा नाज़िल करना

Waquranan faraqnahu litaqraahu 'ala alnnasi 'ala mukthin wanazzalnahu tanzeelan (al-ʾIsrāʾ 17:106)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और क़ुरआन को हमने थोड़ा-थोड़ा करके इसलिए अवतरित किया, ताकि तुम ठहर-ठहरकर उसे लोगो को सुनाओ, और हमने उसे उत्तम रीति से क्रमशः उतारा है

English Sahih:

And [it is] a Quran which We have separated [by intervals] that you might recite it to the people over a prolonged period. And We have sent it down progressively. ([17] Al-Isra : 106)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और क़ुरान को हमने थोड़ा थोड़ा करके इसलिए नाज़िल किया कि तुम लोगों के सामने (ज़रुरत पड़ने पर) मोहलत दे देकर उसको पढ़ दिया करो