وَّجَعَلَنِيْ مُبٰرَكًا اَيْنَ مَا كُنْتُۖ وَاَوْصٰنِيْ بِالصَّلٰوةِ وَالزَّكٰوةِ مَا دُمْتُ حَيًّا ۖ ( مريم: ٣١ )
And He (has) made me
وَجَعَلَنِى
और उसने बनाया मुझे
blessed
مُبَارَكًا
मुबारक
wherever
أَيْنَ
जहाँ कहीं
wherever
مَا
जहाँ कहीं
I am
كُنتُ
मैं हूँ
and has enjoined (on) me
وَأَوْصَٰنِى
और उसने ताकीद की मुझे
[of] the prayer
بِٱلصَّلَوٰةِ
नमाज़ की
and zakah
وَٱلزَّكَوٰةِ
और ज़कात की
as long as I am
مَا
जब तक मैं रहूँ
as long as I am
دُمْتُ
जब तक मैं रहूँ
alive
حَيًّا
ज़िन्दा
Waja'alanee mubarakan ayna ma kuntu waawsanee bialssalati waalzzakati ma dumtu hayyan (Maryam 19:31)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और मुझे बरकतवाला किया जहाँ भी मैं रहूँ, और मुझे नमाज़ और ज़कात की ताकीद की, जब तक कि मैं जीवित रहूँ
English Sahih:
And He has made me blessed wherever I am and has enjoined upon me prayer and Zakah as long as I remain alive ([19] Maryam : 31)