يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقْنٰكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَ يَوْمٌ لَّا بَيْعٌ فِيْهِ وَلَا خُلَّةٌ وَّلَا شَفَاعَةٌ ۗوَالْكٰفِرُوْنَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ( البقرة: ٢٥٤ )
Ya ayyuha allatheena amanoo anfiqoo mimma razaqnakum min qabli an yatiya yawmun la bay'un feehi wala khullatun wala shafa'atun waalkafiroona humu alththalimoona (al-Baq̈arah 2:254)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ ईमान लानेवालो! हमने जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें से ख़र्च करो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मित्रता होगी और न कोई सिफ़ारिश। ज़ालिम वही है, जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई है
English Sahih:
O you who have believed, spend from that which We have provided for you before there comes a Day in which there is no exchange [i.e., ransom] and no friendship and no intercession. And the disbelievers – they are the wrongdoers. ([2] Al-Baqarah : 254)