وَاِذَا دُعُوْٓا اِلَى اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ اِذَا فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ( النور: ٤٨ )
And when
وَإِذَا
और जब
they are called
دُعُوٓا۟
वो बुलाए जाते हैं
to
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के
Allah
ٱللَّهِ
तरफ़ अल्लाह के
and His Messenger
وَرَسُولِهِۦ
और उसके रसूल के
to judge
لِيَحْكُمَ
ताकि वो फ़ैसला करे
between them
بَيْنَهُمْ
दर्मियान उनके
behold
إِذَا
तब
a party
فَرِيقٌ
एक गिरोह (के लोग)
of them
مِّنْهُم
उनमें से
(is) averse
مُّعْرِضُونَ
ऐराज़ करने वाले होते हैं
Waitha du'oo ila Allahi warasoolihi liyahkuma baynahum itha fareequn minhum mu'ridoona (an-Nūr 24:48)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जब उन्हें अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाया जाता है, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करें तो क्या देखते है कि उनमें से एक गिरोह कतरा जाता है;
English Sahih:
And when they are called to [the words of] Allah and His Messenger to judge between them, at once a party of them turns aside [in refusal]. ([24] An-Nur : 48)