وَلِيَعْلَمَ الَّذِيْنَ نَافَقُوْا ۖوَقِيْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَوِ ادْفَعُوْا ۗ قَالُوْا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنٰكُمْ ۗ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَىِٕذٍ اَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْاِيْمَانِ ۚ يَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِهِمْ مَّا لَيْسَ فِيْ قُلُوْبِهِمْ ۗ وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُوْنَۚ ( آل عمران: ١٦٧ )
Waliya'lama allatheena nafaqoo waqeela lahum ta'alaw qatiloo fee sabeeli Allahi awi idfa'oo qaloo law na'lamu qitalan laittaba'nakum hum lilkufri yawmaithin aqrabu minhum lileemani yaqooloona biafwahihim ma laysa fee quloobihim waAllahu a'lamu bima yaktumoona (ʾĀl ʿImrān 3:167)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि 'आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।' उन्होंने कहा, 'यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।' उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है
English Sahih:
And that He might make evident those who are hypocrites. For it was said to them, "Come, fight in the way of Allah or [at least] defend." They said, "If we had known [there would be] battle, we would have followed you." They were nearer to disbelief that day than to faith, saying with their mouths what was not in their hearts. And Allah is most knowing of what they conceal . ([3] Ali 'Imran : 167)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और मुनाफ़िक़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफ़िक़ों से कहा गया कि आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुशमन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ़्र के ज्यादा क़रीब थे अपने मुंह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है