Skip to main content

اِنَّ الَّذِيْنَ اشْتَرَوُا الْكُفْرَ بِالْاِيْمَانِ لَنْ يَّضُرُّوا اللّٰهَ شَيْـًٔاۚ وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ   ( آل عمران: ١٧٧ )

Indeed
إِنَّ
बेशक
those who
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
(have) purchased
ٱشْتَرَوُا۟
ख़रीद लिया
[the] disbelief
ٱلْكُفْرَ
कुफ़्र को
with the faith
بِٱلْإِيمَٰنِ
बदले ईमान के
never
لَن
हरगिज़ नहीं
will they harm
يَضُرُّوا۟
वो नुक़सान दे सकते
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह को
(in) anything
شَيْـًٔا
कुछ भी
and for them
وَلَهُمْ
और उनके लिए
(is) a punishment
عَذَابٌ
अज़ाब है
painful
أَلِيمٌ
दर्दनाक

Inna allatheena ishtarawoo alkufra bialeemani lan yadurroo Allaha shayan walahum 'athabun aleemun (ʾĀl ʿImrān 3:177)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

जो लोग ईमान की क़ीमत पर इनकार और अधर्म के ग्राहक हुए, वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, उनके लिए तो दुखद यातना है

English Sahih:

Indeed, those who purchase disbelief [in exchange] for faith – never will they harm Allah at all, and for them is a painful punishment. ([3] Ali 'Imran : 177)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

बेशक जिन लोगों ने ईमान के एवज़ कुफ़्र ख़रीद किया वह हरगिज़ खुदा का कुछ भी नहीं बिगाड़ेंगे (बल्कि आप अपना) और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है