وَلَوْ اَنَّ مَا فِى الْاَرْضِ مِنْ شَجَرَةٍ اَقْلَامٌ وَّالْبَحْرُ يَمُدُّهٗ مِنْۢ بَعْدِهٖ سَبْعَةُ اَبْحُرٍ مَّا نَفِدَتْ كَلِمٰتُ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ عَزِيْزٌ حَكِيْمٌ ( لقمان: ٢٧ )
Walaw annama fee alardi min shajaratin aqlamun waalbahru yamudduhu min ba'dihi sab'atu abhurin ma nafidat kalimatu Allahi inna Allaha 'azeezun hakeemun (Luq̈mān 31:27)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
धरती में जितने वृक्ष है, यदि वे क़लम हो जाएँ और समुद्र उसकी स्याही हो जाए, उसके बाद सात और समुद्र हों, तब भी अल्लाह के बोल समाप्त न हो सकेंगे। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
English Sahih:
And if whatever trees upon the earth were pens and the sea [was ink], replenished thereafter by seven [more] seas, the words of Allah would not be exhausted. Indeed, Allah is Exalted in Might and Wise. ([31] Luqman : 27)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जितने दरख्त ज़मीन में हैं सब के सब क़लम बन जाएँ और समन्दर उसकी सियाही बनें और उसके (ख़त्म होने के) बाद और सात समन्दर (सियाही हो जाएँ और ख़ुदा का इल्म और उसकी बातें लिखी जाएँ) तो भी ख़ुदा की बातें ख़त्म न होगीं बेशक ख़ुदा सब पर ग़ालिब (और) दाना (बीना) है