يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَدْخُلُوْا بُيُوْتَ النَّبِيِّ اِلَّآ اَنْ يُّؤْذَنَ لَكُمْ اِلٰى طَعَامٍ غَيْرَ نٰظِرِيْنَ اِنٰىهُ وَلٰكِنْ اِذَا دُعِيْتُمْ فَادْخُلُوْا فَاِذَا طَعِمْتُمْ فَانْتَشِرُوْا وَلَا مُسْتَأْنِسِيْنَ لِحَدِيْثٍۗ اِنَّ ذٰلِكُمْ كَانَ يُؤْذِى النَّبِيَّ فَيَسْتَحْيٖ مِنْكُمْ ۖوَاللّٰهُ لَا يَسْتَحْيٖ مِنَ الْحَقِّۗ وَاِذَا سَاَلْتُمُوْهُنَّ مَتَاعًا فَاسْـَٔلُوْهُنَّ مِنْ وَّرَاۤءِ حِجَابٍۗ ذٰلِكُمْ اَطْهَرُ لِقُلُوْبِكُمْ وَقُلُوْبِهِنَّۗ وَمَا كَانَ لَكُمْ اَنْ تُؤْذُوْا رَسُوْلَ اللّٰهِ وَلَآ اَنْ تَنْكِحُوْٓا اَزْوَاجَهٗ مِنْۢ بَعْدِهٖٓ اَبَدًاۗ اِنَّ ذٰلِكُمْ كَانَ عِنْدَ اللّٰهِ عَظِيْمًا ( الأحزاب: ٥٣ )
Ya ayyuha allatheena amanoo la tadkhuloo buyoota alnnabiyyi illa an yuthana lakum ila ta'amin ghayra nathireena inahu walakin itha du'eetum faodkhuloo faitha ta'imtum faintashiroo wala mustaniseena lihadeethin inna thalikum kana yuthee alnnabiyya fayastahyee minkum waAllahu la yastahyee mina alhaqqi waitha saaltumoohunna mata'an faisaloohunna min warai hijabin thalikum atharu liquloobikum waquloobihinna wama kana lakum an tuthoo rasoola Allahi wala an tankihoo azwajahu min ba'dihi abadan inna thalikum kana 'inda Allahi 'atheeman (al-ʾAḥzāb 33:53)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ ईमान लानेवालो! नबी के घरों में प्रवेश न करो, सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने पर आने की अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि उसकी (खाना पकने की) तैयारी की प्रतिक्षा में न रहो। अलबत्ता जब तुम्हें बुलाया जाए तो अन्दर जाओ, और जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ, बातों में लगे न रहो। निश्चय ही यह हरकत नबी को तकलीफ़ देती है। किन्तु उन्हें तुमसे लज्जा आती है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहने से लज्जा नहीं करता। और जब तुम उनसे कुछ माँगों तो उनसे परदे के पीछे से माँगो। यह अधिक शुद्धता की बात है तुम्हारे दिलों के लिए और उनके दिलों के लिए भी। तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम अल्लाह के रसूल को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह कि उसके बाद कभी उसकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही अल्लाह की दृष्टि में यह बड़ी गम्भीर बात है
English Sahih:
O you who have believed, do not enter the houses of the Prophet except when you are permitted for a meal, without awaiting its readiness. But when you are invited, then enter; and when you have eaten, disperse without seeking to remain for conversation. Indeed, that [behavior] was troubling the Prophet, and he is shy of [dismissing] you. But Allah is not shy of the truth. And when you ask [his wives] for something, ask them from behind a partition. That is purer for your hearts and their hearts. And it is not [conceivable or lawful] for you to harm the Messenger of Allah or to marry his wives after him, ever. Indeed, that would be in the sight of Allah an enormity. ([33] Al-Ahzab : 53)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ऐ ईमानदारों तुम लोग पैग़म्बर के घरों में न जाया करो मगर जब तुमको खाने के वास्ते (अन्दर आने की) इजाज़त दी जाए (लेकिन) उसके पकने का इन्तेज़ार (नबी के घर बैठकर) न करो मगर जब तुमको बुलाया जाए तो (ठीक वक्त पर) जाओ और फिर जब खा चुको तो (फौरन अपनी अपनी जगह) चले जाया करो और बातों में न लग जाया करो क्योंकि इससे पैग़म्बर को अज़ीयत होती है तो वह तुम्हारा लैहाज़ करते हैं और खुदा तो ठीक (ठीक कहने) से झेंपता नहीं और जब पैग़म्बर की बीवियों से कुछ माँगना हो तो पर्दे के बाहर से माँगा करो यही तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के वास्ते बहुत सफाई की बात है और तुम्हारे वास्ते ये जायज़ नहीं कि रसूले खुदा को (किसी तरह) अज़ीयत दो और न ये जायज़ है कि तुम उसके बाद कभी उनकी बीवियों से निकाह करो बेशक ये ख़ुदा के नज़दीक बड़ा (गुनाह) है