يَعْمَلُوْنَ لَهٗ مَا يَشَاۤءُ مِنْ مَّحَارِيْبَ وَتَمَاثِيْلَ وَجِفَانٍ كَالْجَوَابِ وَقُدُوْرٍ رّٰسِيٰتٍۗ اِعْمَلُوْٓا اٰلَ دَاوٗدَ شُكْرًا ۗوَقَلِيْلٌ مِّنْ عِبَادِيَ الشَّكُوْرُ ( سبإ: ١٣ )
Ya'maloona lahu ma yashao min mahareeba watamatheela wajifanin kaaljawabi waqudoorin rasiyatin i'maloo ala dawooda shukran waqaleelun min 'ibadiya alshshakooru (Sabaʾ 34:13)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे उसके लिए बनाते, जो कुछ वह चाहता - बड़े-बड़े भवन, प्रतिमाएँ, बड़े हौज़ जैसे थाल और जमी रहनेवाली देगें - 'ऐ दाऊद के लोगों! कर्म करो, कृतज्ञता दिखाने रूप में। मेरे बन्दों में कृतज्ञ थोड़े ही हैं।'
English Sahih:
They made for him what he willed of elevated chambers, statues, bowls like reservoirs, and stationary kettles. [We said], "Work, O family of David, in gratitude." And few of My servants are grateful. ([34] Saba : 13)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ग़रज़ सुलेमान को जो बनवाना मंज़ूर होता ये जिन्नात उनके लिए बनाते थे (जैसे) मस्जिदें, महल, क़िले और (फरिश्ते अम्बिया की) तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले और (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी बड़ी) देग़ें (कि एक हज़ार आदमी का खाना पक सके) ऐ दाऊद की औलाद शुक्र करते रहो और मेरे बन्दों में से शुक्र करने वाले (बन्दे) थोड़े से हैं