وَوَهَبْنَا لَهٗٓ اَهْلَهٗ وَمِثْلَهُمْ مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنَّا وَذِكْرٰى لِاُولِى الْاَلْبَابِ ( ص: ٤٣ )
And We granted
وَوَهَبْنَا
और अता किए हमने
[to] him
لَهُۥٓ
उसे
his family
أَهْلَهُۥ
उसके घर वाले
and a like of them
وَمِثْلَهُم
और मानिन्द उनके
with them
مَّعَهُمْ
साथ उनके
a Mercy
رَحْمَةً
बतौरे रहमत
from Us
مِّنَّا
हमारी तरफ़ से
and a Reminder
وَذِكْرَىٰ
और एक नसीहत
for those of understanding
لِأُو۟لِى
अक़्ल वालों के लिए
for those of understanding
ٱلْأَلْبَٰبِ
अक़्ल वालों के लिए
Wawahabna lahu ahlahu wamithlahum ma'ahum rahmatan minna wathikra liolee alalbabi (Ṣād 38:43)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और हमने उसे उसके परिजन दिए और उनके साथ वैसे ही और भी; अपनी ओर से दयालुता के रूप में और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के रूप में।
English Sahih:
And We granted him his family and a like [number] with them as mercy from Us and a reminder for those of understanding. ([38] Sad : 43)