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اَنْ تَقُوْلَ نَفْسٌ يّٰحَسْرَتٰى عَلٰى مَا فَرَّطْتُّ فِيْ جَنْۢبِ اللّٰهِ وَاِنْ كُنْتُ لَمِنَ السَّاخِرِيْنَۙ   ( الزمر: ٥٦ )

Lest
أَن
(ऐसा ना हो) कि
should say
تَقُولَ
कहे
a soul
نَفْسٌ
कोई नफ़्स
"Oh! My regret
يَٰحَسْرَتَىٰ
ऐ हसरत
over
عَلَىٰ
उस पर जो
what
مَا
उस पर जो
I neglected
فَرَّطتُ
कमी/ कोताही की मैं ने
in
فِى
हक़ में
regard to
جَنۢبِ
हक़ में
Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के
and that
وَإِن
और बेशक
I was
كُنتُ
था मैं
surely among
لَمِنَ
अलबत्ता मज़ाक़ उड़ाने वालों में से
the mockers"
ٱلسَّٰخِرِينَ
अलबत्ता मज़ाक़ उड़ाने वालों में से

An taqoola nafsun ya hasrata 'ala ma farrattu fee janbi Allahi wain kuntu lamina alssakhireena (az-Zumar 39:56)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

कहीं ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति कहने लगे, 'हाय, अफ़सोस उसपर! जो कोताही अल्लाह के हक़ में मैंने की। और मैं तो परिहास करनेवालों मं ही सम्मिलित रहा।'

English Sahih:

Lest a soul should say, "Oh, [how great is] my regret over what I neglected in regard to Allah and that I was among the mockers." ([39] Az-Zumar : 56)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(कहीं ऐसा न हो कि) (तुममें से) कोई शख्स कहने लगे कि हाए अफ़सोस मेरी इस कोताही पर जो मैने ख़ुदा (की बारगाह) का तक़र्रुब हासिल करने में की और मैं तो बस उन बातों पर हँसता ही रहा