يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا كُوْنُوْا قَوَّامِيْنَ بِالْقِسْطِ شُهَدَاۤءَ لِلّٰهِ وَلَوْ عَلٰٓى اَنْفُسِكُمْ اَوِ الْوَالِدَيْنِ وَالْاَقْرَبِيْنَ ۚ اِنْ يَّكُنْ غَنِيًّا اَوْ فَقِيْرًا فَاللّٰهُ اَوْلٰى بِهِمَاۗ فَلَا تَتَّبِعُوا الْهَوٰٓى اَنْ تَعْدِلُوْا ۚ وَاِنْ تَلْوٗٓا اَوْ تُعْرِضُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرًا ( النساء: ١٣٥ )
Ya ayyuha allatheena amanoo koonoo qawwameena bialqisti shuhadaa lillahi walaw 'ala anfusikum awi alwalidayni waalaqrabeena in yakun ghaniyyan aw faqeeran faAllahu awla bihima fala tattabi'oo alhawa an ta'diloo wain talwoo aw tu'ridoo fainna Allaha kana bima ta'maloona khabeeran (an-Nisāʾ 4:135)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह के लिए गवाही देते हुए इनसाफ़ पर मज़बूती के साथ जमे रहो, चाहे वह स्वयं तुम्हारे अपने या माँ-बाप और नातेदारों के विरुद्ध ही क्यों न हो। कोई धनवान हो या निर्धन (जिसके विरुद्ध तुम्हें गवाही देनी पड़े) अल्लाह को उनसे (तुमसे कहीं बढ़कर) निकटता का सम्बन्ध है, तो तुम अपनी इच्छा के अनुपालन में न्याय से न हटो, क्योंकि यदि तुम हेर-फेर करोगे या कतराओगे, तो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी ख़बर रहेगी
English Sahih:
O you who have believed, be persistently standing firm in justice, witnesses for Allah, even if it be against yourselves or parents and relatives. Whether one is rich or poor, Allah is more worthy of both. So follow not [personal] inclination, lest you not be just. And if you distort [your testimony] or refuse [to give it], then indeed Allah is ever, of what you do, Aware. ([4] An-Nisa : 135)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ऐ ईमानवालों मज़बूती के साथ इन्साफ़ पर क़ायम रहो और ख़ुदा के लये गवाही दो अगरचे (ये गवाही) ख़ुद तुम्हारे या तुम्हारे मॉ बाप या क़राबतदारों के लिए खिलाफ़ (ही क्यो) न हो ख्वाह मालदार हो या मोहताज (क्योंकि) ख़ुदा तो (तुम्हारी बनिस्बत) उनपर ज्यादा मेहरबान है तो तुम (हक़ से) कतराने में ख्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो और अगर घुमा फिरा के गवाही दोगे या बिल्कुल इन्कार करोगे तो (याद रहे जैसी करनी वैसी भरनी क्योंकि) जो कुछ तुम करते हो ख़ुद उससे ख़ूब वाक़िफ़ है