اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا ثُمَّ كَفَرُوْا ثُمَّ اٰمَنُوْا ثُمَّ كَفَرُوْا ثُمَّ ازْدَادُوْا كُفْرًا لَّمْ يَكُنِ اللّٰهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيْلًاۗ ( النساء: ١٣٧ )
Indeed
إِنَّ
बेशक
those who
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
believed
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
then
ثُمَّ
फिर
disbelieved
كَفَرُوا۟
उन्होंने कुफ़्र किया
then
ثُمَّ
फिर
(again) believed
ءَامَنُوا۟
वो ईमान लाए
then
ثُمَّ
फिर
disbelieved
كَفَرُوا۟
उन्होंने कुफ़्र किया
then
ثُمَّ
फिर
increased
ٱزْدَادُوا۟
वो बढ़ गए
(in) disbelief -
كُفْرًا
कुफ़्र में
not
لَّمْ
नहीं
will
يَكُنِ
है
Allah
ٱللَّهُ
अल्लाह
forgive
لِيَغْفِرَ
कि वो बख़्श दे
[for] them
لَهُمْ
उन्हें
and not
وَلَا
और ना
will guide them
لِيَهْدِيَهُمْ
ये कि हिदायत दे उन्हें
(to) a (right) way
سَبِيلًۢا
रास्ते की
Inna allatheena amanoo thumma kafaroo thumma amanoo thumma kafaroo thumma izdadoo kufran lam yakuni Allahu liyaghfira lahum wala liyahdiyahum sabeelan (an-Nisāʾ 4:137)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
रहे वे लोग जो ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर इनकार की दशा में बढते चले गए तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें राह दिखाएगा
English Sahih:
Indeed, those who have believed then disbelieved, then believed then disbelieved, and then increased in disbelief – never will Allah forgive them, nor will He guide them to a way. ([4] An-Nisa : 137)