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فَلِذٰلِكَ فَادْعُ ۚوَاسْتَقِمْ كَمَآ اُمِرْتَۚ وَلَا تَتَّبِعْ اَهْوَاۤءَهُمْۚ وَقُلْ اٰمَنْتُ بِمَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ مِنْ كِتٰبٍۚ وَاُمِرْتُ لِاَعْدِلَ بَيْنَكُمْ ۗ اَللّٰهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ ۗ لَنَآ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ۗ لَاحُجَّةَ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ ۗ اَللّٰهُ يَجْمَعُ بَيْنَنَا ۚوَاِلَيْهِ الْمَصِيْرُ ۗ   ( الشورى: ١٥ )

So to that
فَلِذَٰلِكَ
तो इसी ( दीन) के लिए
then invite
فَٱدْعُۖ
पस दावत दीजिए
and stand firm
وَٱسْتَقِمْ
और क़ायम रहिए
as
كَمَآ
जैसा कि
you are commanded
أُمِرْتَۖ
हुक्म दिए गए आप
and (do) not
وَلَا
और ना
follow
تَتَّبِعْ
आप पैरवी कीजिए
their desires
أَهْوَآءَهُمْۖ
उनकी ख़्वाहिशात की
but say
وَقُلْ
और कह दीजिए
"I believe
ءَامَنتُ
ईमान लाया मैं
in what
بِمَآ
उस पर जो
Allah has sent down
أَنزَلَ
नाज़िल किया
Allah has sent down
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
of
مِن
किताब से
(the) Book
كِتَٰبٍۖ
किताब से
and I am commanded
وَأُمِرْتُ
और हुक्म दिया गया है मुझे
that I do justice
لِأَعْدِلَ
कि मैं अदल करूँ
between you
بَيْنَكُمُۖ
दर्मियान तुम्हारे
Allah
ٱللَّهُ
अल्लाह ही
(is) our Lord
رَبُّنَا
रब है हमारा
and your Lord
وَرَبُّكُمْۖ
और रब तुम्हारा
For us
لَنَآ
हमारे लिए
our deeds
أَعْمَٰلُنَا
आमाल हमारे
and for you
وَلَكُمْ
और तुम्हारे लिए
your deeds
أَعْمَٰلُكُمْۖ
आमाल तुम्हारे
(There is) no
لَا
नहीं कोई झगड़ा
argument
حُجَّةَ
नहीं कोई झगड़ा
between us
بَيْنَنَا
दर्मियान हमारे
and between you
وَبَيْنَكُمُۖ
और दर्मियान तुम्हारे
Allah
ٱللَّهُ
अल्लाह
will assemble
يَجْمَعُ
वो जमा कर देगा
[between] us
بَيْنَنَاۖ
हमें आपस में
and to Him
وَإِلَيْهِ
और तरफ़ उसी के
(is) the final return"
ٱلْمَصِيرُ
लौटना है

Falithalika faod'u waistaqim kama omirta wala tattabi' ahwaahum waqul amantu bima anzala Allahu min kitabin waomirtu lia'dila baynakum Allahu rabbuna warabbukum lana a'maluna walakum a'malukum la hujjata baynana wabaynakumu Allahu yajma'u baynana wailayhi almaseeru (aš-Šūrā 42:15)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

अतः इसी लिए (उन्हें सत्य की ओर) बुलाओ, और जैसा कि तुम्हें हुक्म दिया गया है स्वयं क़ायम रहो, और उनकी इच्छाओं का पालन न करना और कह दो, 'अल्लाह ने जो किताब अवतरित की है, मैं उसपर ईमान लाया। मुझे तो आदेश हुआ है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह ही हमारा भी रब है और तुम्हारा भी। हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हममें और तुममें कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह हम सबको इकट्ठा करेगा और अन्ततः उसी की ओर जाना है।'

English Sahih:

So to that [religion of Allah] invite, [O Muhammad], and remain on a right course as you are commanded and do not follow their inclinations but say, "I have believed in what Allah has revealed of scripture [i.e., the Quran], and I have been commanded to do justice among you. Allah is our Lord and your Lord. For us are our deeds, and for you your deeds. There is no [need for] argument between us and you. Allah will bring us together, and to Him is the [final] destination." ([42] Ash-Shuraa : 15)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

तो (ऐ रसूल) तुम (लोगों को) उसी (दीन) की तरफ बुलाते रहे जो और जैसा तुमको हुक्म हुआ है (उसी पर क़ायम रहो और उनकी नफ़सियानी ख्वाहिशों की पैरवी न करो और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब ख़ुदा ने नाज़िल की है उस पर मैं ईमान रखता हूँ और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तुम्हारे एख्तेलाफात के (दरमेयान) इन्साफ़ (से फ़ैसला) करूँ ख़ुदा ही हमारा भी परवरदिगार है और वही तुम्हारा भी परवरदिगार है हमारी कारगुज़ारियाँ हमारे ही लिए हैं और तुम्हारी कारस्तानियाँ तुम्हारे वास्ते हममें और तुममें तो कुछ हुज्जत (व तक़रार की ज़रूरत) नहीं ख़ुदा ही हम (क़यामत में) सबको इकट्ठा करेगा