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اَمْ لَهُمْ شُرَكٰۤؤُا شَرَعُوْا لَهُمْ مِّنَ الدِّيْنِ مَا لَمْ يَأْذَنْۢ بِهِ اللّٰهُ ۗوَلَوْلَا كَلِمَةُ الْفَصْلِ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۗوَاِنَّ الظّٰلِمِيْنَ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ   ( الشورى: ٢١ )

Or
أَمْ
या
for them
لَهُمْ
उनके लिए
(are) partners
شُرَكَٰٓؤُا۟
कुछ शरीक हैं
who have ordained
شَرَعُوا۟
उन्होंने मुक़र्रर कर दिया
for them
لَهُم
उनके लिए
of
مِّنَ
दीन में से
the religion
ٱلدِّينِ
दीन में से
what
مَا
वो जो
not
لَمْ
नहीं
Allah has given permission of it
يَأْذَنۢ
इजाज़त दी
Allah has given permission of it
بِهِ
उसकी
Allah has given permission of it
ٱللَّهُۚ
अल्लाह ने
And if not
وَلَوْلَا
और अगर ना होती
(for) a word
كَلِمَةُ
बात
decisive
ٱلْفَصْلِ
फ़ैसले की
surely, it (would have) been judged
لَقُضِىَ
अलबत्ता फ़ैसला कर दिया जाता
between them
بَيْنَهُمْۗ
दर्मियान उनके
And indeed
وَإِنَّ
और बेशक
the wrongdoers
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिम लोग
for them
لَهُمْ
उनके लिए
(is a) punishment
عَذَابٌ
अज़ाब है
painful
أَلِيمٌ
दर्दनाक

Am lahum shurakao shara'oo lahum mina alddeeni ma lam yathan bihi Allahu walawla kalimatu alfasli laqudiya baynahum wainna alththalimeena lahum 'athabun aleemun (aš-Šūrā 42:21)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

(क्या उन्हें समझ नहीं) या उनके कुछ ऐसे (ठहराए हुए) साझीदार है, जिन्होंन उनके लिए कोई ऐसा धर्म निर्धारित कर दिया है जिसकी अनुज्ञा अल्लाह ने नहीं दी? यदि फ़ैसले की बात निश्चित न हो गई होती तो उनके बीच फ़ैसला हो चुका होता। निश्चय ही ज़ालिमों के लिए दुखद यातना है

English Sahih:

Or have they partners [i.e., other deities] who have ordained for them a religion to which Allah has not consented? But if not for the decisive word, it would have been concluded between them. And indeed, the wrongdoers will have a painful punishment. ([42] Ash-Shuraa : 21)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

क्या उन लोगों के (बनाए हुए) ऐसे शरीक हैं जिन्होंने उनके लिए ऐसा दीन मुक़र्रर किया है जिसकी ख़ुदा ने इजाज़त नहीं दी और अगर फ़ैसले (के दिन) का वायदा न होता तो उनमें यक़ीनी अब तक फैसला हो चुका होता और ज़ालिमों के वास्ते ज़रूर दर्दनाक अज़ाब है